देहरादून। जन प्रतिनिधियों, प्रशासन और अवर अभियंता (जेई) ने अगर झोल-सेरकी के निवासियों की बात को गंभीरता से सुना होता तो गुरुवार तड़के हुआ हादसा टल सकता था। जिस पहाड़ पर मालदेवता-सेरकी-भैसवाड़ मोटर मार्ग का निर्माण हो रहा है, वह बलुआ मिट्टी से बना है। इसके चलते यह पहाड़ काफी कमजोर है। यहां हर वर्ष बरसात में भूस्खलन की घटनाएं होती हैं। जनवरी में जब सड़क का निर्माण शुरू हुआ तो ग्रामीणों ने यह बात जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को बताई थी। इसके बाद जब रोड कटिंग का मलबा गांव की तरफ डंप किया जाने लगा, तब ग्रामीणों ने पुरजोर तरीके से इसका विरोध किया। लेकिन, न तो जनप्रतिनिधियों ने ग्रामीणों की बात सुनी और न जेई ने ही ठेकेदार की इस लापरवाही पर ध्यान दिया। जिसका नतीजा सामने है।
झोल-सेरकी के श्याम सिंह ने बताया कि जनवरी में सड़क का निर्माण शुरू होने के बाद ही मलबा नीचे गांव की तरफ गिराया जाने लगा था। ग्रामीणों को तभी अंदाजा हो गया था कि भविष्य में यह मलबा न सिर्फ गांव के 35 परिवारों, बल्कि यहां से होकर टिहरी जाने वाली मुख्य सड़क से गुजरने वाले राहगीरों के लिए भी खतरा बन सकता है। ऐसे में ठेकेदार और जेई को इस खतरे से अवगत कराते हुए मलबे के निस्तारण के लिए डंपिंग यार्ड बनाने को कहा गया, मगर वह बात को टाल गए। स्थानीय जन प्रतिनिधियों से भी शिकायत की, लेकिन उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया। इसी गांव के मनोज पंवार ने बताया कि कई दफा कहने के बाद ठेकेदार और जेई ने सड़क से नीचे की तरफ जाल लगाना शुरू किया, लेकिन यह जाल मात्र तीन मीटर चौड़ा और डेढ़ मीटर ऊंचा था। जबकि, रोड कटिंग से निकले मलबे की ऊंचाई करीब 10 मीटर पहुंच गई थी।
रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ के बेटे गौरव शर्मा ने बताया कि सड़क के निर्माण में शुरू से अनियमितता बरती जा रही है। कुछ राजनीतिक पहुंच वाले लोग ठेकेदार व अपने परिचितों को लाभ पहुंचाने के लिए सड़क बनवा रहे हैं। धरातल पर भले कोई डंपिंग यार्ड न हो, मगर कागजों में चार किलोमीटर के दायरे में डंपिंग यार्ड बना दिया गया। उन्होंने कहा कि गुरुवार को हुआ हादसा तो बस चेतावनी है। निर्माणाधीन सड़क में कई दूसरे स्थानों पर भी मानकों को ताक पर रखकर मलबा डाला गया है।