देहरादून। सच्चे मित्र का अर्थ सिर्फ यह नहीं कि जब तुम दुखी हो तो वह आपके साथ रहे, बल्कि उससे बढ़कर यह है कि वह कभी आपको दुखी ही न होने दे। कोरोना के संकटकाल में समाज में इसकी मिसाल भी देखने को मिली। मुश्किल दौर में तमाम व्यक्तियों को ऐसे मित्र मिले, जिनसे पहले वह कभी नहीं मिले थे। लेकिन, उन्होंने एक दोस्त से बढ़कर साथ निभाया। इसी भावना के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने मित्रता दिवस की इस साल की थीम ‘मित्रता के माध्यम से मानवीय भावना को साझा करना’ रखी है। अच्छी बात यह रही कि मित्रता दिवस की यह थीम पूरी तरह सार्थक होती दिखी।
कोरोना की दूसरी लहर में बड़ी संख्या में लोग चिकित्सा उपकरणों से लेकर, आक्सीजन सिलिंडर, अस्पतालों में बेड आदि को लेकर भटकते दिखे। यह ऐसा दौर था, जब कई मोर्चे पर सरकार भी असहाय नजर आ रही थी। हालांकि, इन सबके बीच भी मदद के रूप में तमाम ऐसे हाथ बढ़े, जिन्होंने मित्र न होते हुए भी मित्रता से बढ़कर एक-दूसरे की मदद की। इसमें सामाजिक संगठनों से लेकर, व्यक्तिगत स्तर पर भी अथक प्रयास किए गए।
खास बात यह भी रही कि पुलिस का मित्रताभरा एक नया चेहरा भी सामने आया। पहली बार लगा कि मित्रता सेवा और सुरक्षा का पुलिस का स्लोगन महज कुछ शब्द नहीं हैं। जो लोग दवाओं, चिकित्सा उपकरणों समेत आक्सीजन की कमी के आगे हार मान चुके थे, उनके लिए पुलिस ने इन सबका इंतजाम किया। यह सिलसिला हालात सामान्य होने तक जारी भी रहा।
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