रुड़की। उत्तराखंड में ऋषिकेश से लेकर केदारनाथ तक करीब 40 से अधिक ऐसे स्थान हैं, जहां पर धीरे-धीरे लगातार भूस्खलन हो रहा है। वहीं, 100 से अधिक ऐसी जगह चिह्नित हुई हैं जहां चट्टान की ताकत (रॉक की स्ट्रेंथ) कम हो रही है। यह बात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की समेत देशभर के विभिन्न संस्थानों की ओर से संयुक्त रूप से किए गए एक शोध में सामने आई है। ऐसे में इन स्थानों पर बड़े भूस्खलन से बचाव के लिए सुरक्षात्मक उपाय अपनाए जाने की आवश्यकता है। वहीं शोध के तहत इस क्षेत्र का एटलस (नक्शे की पुस्तक) भी बनाया गया है।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भूकंप, भूस्खलन, बादल फटना समेत अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से संवेदनशील हैं। पिछले कुछ समय से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की घटनाएं भयंकर रूप ले रही हैं। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई।
वहीं, उत्तराखंड के चमोली जिले सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में भी बरसात के सीजन में भूस्खलन की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। उधर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोजेक्ट के तहत उत्तराखंड में भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों का पता लगाने के लिए आइआइटी मुंबई, आइआइटी रुड़की, केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की, एलएसएम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़, कुमाऊं विवि, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, पंजाब यूनिवर्सिटी ने मिलकर शोध कार्य किया। इसके तहत ऋषिकेश से केदारनाथ तक करीब 223 किमी तक वैज्ञानिकों, इंजीनियरों व अन्य विशेषज्ञों की टीम ने फील्ड में जाकर सर्वे किया।
इस प्रोजेक्ट में शामिल आइआइटी रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. एसपी प्रधान ने बताया कि ऋषिकेश से केदारनाथ तक के करीब 223 किमी के क्षेत्र को कुल 21 जोन में बांटकर काम किया गया। 13 टीम ने मिलकर कार्य किया। इस दौरान यह देखा गया कि इस पूरे क्षेत्र में किस प्रकार के पत्थर हैं, उनमें दरारें हैं तो कितनी हैं, चट्टान की ताकत कितनी है, ढलान किस प्रकार का है और भूस्खलन का कितना खतरा है। डा. एसपी प्रधान कहते हैं कि पहाड़ों में विकास जरूरी है, लेकिन भूस्खलन, भूकंप और अन्य आपदाओं के खतरे को ध्यान में रखते हुए ही विकास कार्य किए जाने चाहिए।
उनके अनुसार प्रदेश में भूस्खलन का खतरा अधिक है, इसलिए यहां पर वैज्ञानिक अध्ययन के बाद विकास कार्य होने चाहिए। वहीं शोध के दौरान जिन क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा बना हुआ है, वहां पर सुरक्षात्मक उपाय अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2019 में यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ था।
इन क्षेत्रों में लगातार हो रहा है भूस्खलन
शोध के दौरान रामबाड़ा, सोनप्रयाग, रामपुर, फाटा, बसुवा, साकणीधार, कलियासौड़, उतरासू, व्यासी, रैथाली, खुड़ियाला धरांसू समेत 40 से अधिक स्थानों में धीरे-धीरे भूस्खलन हो रहा है।