रशिया की नताल्या की कहानी, मातृभाषा थी तो रूसी पर अब है बोली हिंदुस्तानी

उत्तराखंड देहरादून

रुड़की। रूस में जन्मी नताल्या मझार को रूसी भाषा का ज्ञान तो जन्म से मिला था, लेकिन भारत, भारतीयों और भारतीय संस्कृति को अपनाने की ललक में उन्होंने रशिया के सेंट पीट्सबर्ग के हिंदी स्कूल में हिंदी की पढ़ाई कर बोलना भी सीखा। करीब 20 वर्षों से रुड़की में रह रही नताल्या ने हिंदी के साथ हिंदुस्तानी संस्कृति को व्यावहारिक रूप में जिया और अपनाया।

नताल्या मझार उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो भारत में रहकर  विदेशी भाषा में बोलचाल के लिए आतुर रहते हैं। नताल्या ने रूस में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे रुड़की निवासी डा. नवीन बंसल से वहीं पर शादी की। इसके बाद वह सन 2008 में भारत में रहने के लिए आ गईं। भारतीय संस्कृति को करीब से जानने के लिए नताल्या की जिज्ञासा बढ़ी तो उन्होंने सेंट पीट्सबर्ग में हिंदी सीख रहे छोटे बच्चों के साथ एडमिशन लिया।

हिंदी और उसका व्याकरण सीखा। बीटेक इन आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल कर चुकी नताल्या के लिए यह सब आसान भी नहीं था। लेकिन मन में ललक और हिंदी बोलने की लगन से उन्हें कामयाब बनाया। अब नताल्या हिंदी का एक-एक शब्द स्पष्ट रूप से उच्चारण करती है। यही नहीं उन्हें फ्रेंच लिखने और बोलने में भी महारत हासिल है। घर पर न केवल हिंदी बल्कि रशियन और फ्रेंच की भी ट्यूशन देती हैं।

डा. बंसल बताते हैं कि उनकी पत्नी ने न केवल हिंदी भाषा और संस्कृति को समझा, बल्कि अपनाया भी है। उनके अनुसार रशिया के लोग एक तरह से एकांतजीवी होते हैं। बहुत कम बोलना पसंद करते हैं। हंसते तो बहुत कम ही हैं। लेकिन उनकी पत्नी ने भारतीयों के साथ बेहतर सामंजस्य बैठाया। परिवार में माता-पिता की छोटी से छोटी चीज का भी वह खुद ध्यान रखती हैं। 

संस्कृत भी सीखने की ललक 
नताल्या मझार ने बताया कि वे जानती हैं कि संस्कृत बेहद समृद्ध भाषा है। इसलिए अब उनकी इच्छा संस्कृत सीखने की है। लेकिन काफी सालों से प्रयास के बावजूद संस्कृत का कोई ऐसा शिक्षक नहीं मिल पाया है, जो उन्हें अच्छी तरह पढ़ा सके। उन्होंने बताया कि भाषाओं को सीखने का उनमें हुनर है और कम समय में ही वे अलग-अलग भाषाओं पर पकड़ बना लेती हैं। 

 

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