पहाड़ की प्रमुख समस्याओं में पानी सबसे ऊपर आता है। बात सिंचाई की हो या पीने के पानी की, दिक्कतों का अंत नहीं है। लेकिन, कीर्तिनगर के कुंडियाड़ गांव में पूर्वजों ने 300 साल पहले ही इस समस्या का समाधान खोज लिया था। उनकी मेहनत आज लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है। बारिश के पानी को जमा करने के लिए पूर्वजों ने लगभग 1200 वर्ग मीटर का तालाब बनाया था। आज यह तालाब इंसान के साथ जानवरों और खेतों की प्यास भी बुझा रहा है।
घाटी के प्राकृतिक जल स्रोतों को भी मिल रहा जीवन
कीर्तिनगर में धारपंयाकोटी के कुंडियाड़ गांव में पूर्वजों की दूरगामी सोच ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रही है। बारिश के पानी को जमा करने के लिए पूर्वजों ने यहां करीब 300 साल पहले लगभग 1200 वर्ग मीटर का तालाब बनाया था। आज इस तालाब से घराट का संचालन भी हो रहा है और खेतों की सिंचाई के साथ ही घाटी के प्राकृतिक जल स्रोतों को भी जीवन मिल रहा है।
पहाड़ की चोटी पर पानी की समस्या के समाधान के लिए यहां करीब 40 मीटर लंबे और 30 मीटर चौड़े कच्चे तालाब का निर्माण किया गया था। इसकी गहराई करीब ढाई मीटर से अधिक थी। चोटी पर कई जगहों से कच्ची गूलों का निर्माण भी किया गया, जिससे बारिश का पानी तालाब तक पहुंच सके।
घरेलू उपयोग और घराट के संचालन में भी काम आता है पानी
स्थानीय निवासी केंद्र सिंह कंडारी व गब्बर सिंह कंडारी ने बताया कि करीब आठ पीढ़ी पूर्व पूर्वजों ने तालाब से खेतों तक करीब 400 मीटर कच्ची गूल बनाई थी। बारिश के सीजन में यह तालाब भर जाता है। जब खेतों को सिंचाई की जरूरत पड़ती है तो इसी तालाब से पानी खोला जाता है। यह पानी घरेलू उपयोग और घराट के संचालन में भी काम आता है।
बारिश के पानी से घराट भी होता है संचालित
पहाड़ की चोटी पर खोदे गए तालाब के पानी और घने जंगल से तलहटी के प्राकृतिक जल स्रोत भी रिचार्ज हो रहे हैं। इससे ढुंडसिर गदेरे के दर्जनों गांवों के किसानों को सिंचाई और पीने के लिए 12 माह पर्याप्त पानी मिल रहा है। जबकि तालाब के पानी से जंगली जानवर भी अपनी प्यास बुझाते हैं।
वन अधिनियम बन रहा बाधा
कुंडियाड़ गांव के तालाब और गूलों के पक्का न होने से तालाब में गाद जमा होने लगी है। इससे तालाब की गहराई अब डेढ़ मीटर तक रह गई है। तालाब से रिसाव भी होने लगा है। जिस कारण ग्रामीण अब तालाब और उससे निकलने वाली सिंचाई गूलों के पक्कीकरण की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।
तालाब से गाद हटाने व अन्य निर्माण के लिए वन विभाग की अनुमति जरूरी है। यह कार्य वन विभाग की देखरेख में किए जा सकते हैं। लेकिन पक्के निर्माण के लिए पहले वन भूमि ट्रांसफर करनी होगी।
-डीएस पुंडीर, रेंजर, माणिक नाथ रेंज, कीर्तिनगर