नैनीताल: वन विभाग के कर्मचारियों के समान कार्य के लिए समान वेतन के मामले अब हाईकोर्ट से प्रतिकूल फैसला आने के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में वन विभाग की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई 12 नवंबर को सुनवाई होनी है। विभाग ने दैनिक श्रमिकों की सेवा नियमावली नहीं होने को आधार बनाया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में ही समान कार्य के लिए समान वेतन देने का आदेश पारित किया था। कोर्ट का कहना था था नियमित अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई से कम वेतन देना नियम विरुद्ध के साथ ही अधिकार का हनन है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतनमान 18 हजार तय किया है।
राज्य के वन महकमे में हजारों कर्मचारी अस्थाई हैं। इनकी नियुक्ति फायर सीजन के अलावा गश्त, कार्यालयों के साथ ही अधिकारी आवास में की गई। ये कर्मचारी न्यूनतम वेतनमान के बिना ही काम कर रहे हैं। साथ ही समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिल रहा है। हाईकोर्ट में विचाराधीन 16 मामलों में सरकार को समान कार्य के लिए समान वेतन देने के आदेश पारित किए हैं लेकिन सरकार द्वारा आदेश को नहीं माना गया तो कर्मचारियों ने अवमानना याचिका दायर कर दी।
नोटिस के बाद भी सरकार व वन विभाग ने संज्ञान नहीं लिया तो कोर्ट ने व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश पारित किए। मुख्य स्थाई अधिवक्ता सीएस रावत के अनुसार सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दाखिल की है। जिस पर 12 नवंबर को सुनवाई होनी है। सोमवार को सरकार हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने की दलील पेश करेगी। बहरहाल वन विभाग में समान कार्य के लिए समान वेतन व न्यूनतम वेतनमान का मामला अफसरों के लिए मुसीबत बन गया है।