हल्द्वानी : सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष में जुटी कांग्रेस के लिए कुमाऊं में 15 सीटों पर चेहरे घोषित करते ही चुनौती भी बढ़ेगी। यह दो तरह की होगी। पहली खुली बगावत। यानी इन सीटों पर निर्दलीय रूप में मैदान में उतरने वाला दावेदार पुराना कांग्रेसी हो सकता है। अंदेशा यह भी है कि टिकट से वंचित दावेदार घोषित प्रत्याशी को कमजोर करे। इस स्थिति में प्रत्याशी के लिए भीतरघात बड़ी समस्या रहेगी। खास बात यह है कि दावेदारी करने वाले अधिकतर नेता पार्टी के किसी न किसी खेमे के करीबी भी हैं। शीर्ष नेतृत्व चाहे लाख दावे करे। लेकिन हरदा और प्रीतम गुट की अलग-अलग राह यहां पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। ऐसे में टिकट वितरण के बाद शीर्ष नेतृत्व को यहां एक प्रभावी राजनीतिक आपदा प्रबंधक की भी जरूरत होगी।
कुमाऊं में विधानसभा की कुल 29 सीटें हैं। इनमें से काशीपुर, गदरपुर, किच्छा, सितारगंज, सल्ट, अल्मोड़ा, डीडीहाट, गंगोलीहाट, कालाढूंगी, लालकुआं, चम्पावत में दावेदारों की संख्या ज्यादा है। सोमेश्वर से पिछला चुनाव 700 वोटों से हारने वाले राजेंद्र बाराकोटी के अलावा राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा ने भी आवेदन किया है। रामनगर में कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत को टिकट देने पर संजय नेगी को दोबारा मनाना भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। यहां लड़ाई हरदा के समर्थक व विरोधी गुट के बीच की अधिक है।
हल्द्वानी सीट पार्टी की वरिष्ठ नेता डा. इंदिरा हृदयेश के निधन से खाली है। उनके बेटे सुमित हृदयेश, प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया समेत 10 लोग यहां से टिकट मांग रहे हैं। नैनीताल सीट पर हाल में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए संजीव आर्य की दावेदारी तो मजबूत है। लेकिन पूर्व विधायक और महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य खुलकर कह चुकी हैं कि दलबदलुओं से पहले टिकट पर उनका हक है। उनके आखिरी वक्त तक टिकट के लिए अडऩे की पूरी संभावना है। ऐसे में कांग्रेस के रणनीतिकारों को टिकट घोषित होते ही राजनीतिक आपदा प्रबंधन के लिए भी जुटना होगा। इसमें चूक की स्थिति में कांग्रेस के लिए सत्ता हासिल करना सपना बन सकता है।