हरिद्वार: चैत्र अमावस्या पर धर्मनगरी हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए श्रृद्धालु उमड़े। इस दौरान कई श्रद्धालुओं ने पितर और कुल देवताओं की पूजा की। ज्योतिषाचार्य पंडित शक्ति धर शर्मा शास्त्री ने बताया कि चैत्र मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या का शास्त्रों में बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। चंद्र मास की दृष्टि से यह वर्ष का अंतिम दिन होता है और इस दिन के बाद अगले दिन बसंत के नवरात्र आरंभ होते हैं। चैत्र मास अमावस्या के दिन अपने पितरों की पूजा करने का बड़ा महत्व है। इस दिन जो कोई व्यक्ति कामनाओं सहित अपने इष्ट देवता पितर देवता कुल देवताओं की पूजा करता है उसे उसका हजार गुना फल प्राप्त होता है। एक अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है।
वर्ष में दो बार नवरात्रों का आगमन होता है उसी समय ऋतु परिवर्तन का भी समय होता है। इसीलिए बसंत और शारदीय नवरात्र मनाने की परंपरा देश में आरंभ काल से ही चली आ रही है। सृष्टि के आरंभ से ही चैत्र कृष्ण अमावस्या को अपने इष्ट देवता पित्र देवता आदि कुल देवताओं की पूजा करने का विधान है।
पितरों के विसर्जन की स्थिति ठीक इसी प्रकार होती है जैसे कि श्राद्ध पितृपक्ष में होती है। वर्ष की अंतिम अमावस्या होने के कारण श्रद्धालु कुरुक्षेत्र, गया, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार जैसे बड़े-बड़े तीर्थ स्थलों पर जाकर अपने पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, पूजा, दान, यज्ञ, हवन आदि करते हैं। इस अमावस्या को गंगा स्नान के उपरांत अपने पुत्रों के प्रति निमित्त दान, पूजा, यज्ञ करने का विधान है।
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