पिथौरागढ़ के घोस्‍ट विलेज मटियाल काे दिल्ली से लौटे दो युवाओं ने फिर कर दिया आबाद

उत्तराखंड पिथौरागढ़

गणाईगंगोली : पिथौरागढ़ जिले के गणाईगंगोली तहसील में स्थित जमतोला ग्राम पंचायत का राजस्व गांव मटियाल पलायन के कारण खाली हो चुका था। गांव में एक भी व्यक्ति न होने के कारण इसे घोस्ट विलेज  यानी भुतहा गांव घोषित कर दिया गया था। लेकिन अब एक बार फिर से गांव में रौनक लौटने लगी है। बंजर पड़ चुके खेत हरे भरे होने लगे हैं। उजड़ चुके गांव में पालतू मवेशी नजर आने लगे हैं। खंडहर हो चुके मकानों को फिर से संवारा जा रहा है। यह सब लाकडाउन के दौरान बाहर प्राइवेट नौकरी छोड़ कर गांव लौटे दो युवक कर रहे हैं। पलायन पर रोकथाम के लिए युवकों का यह प्रयास बड़ा संदेश बन रहा है।

रोजगार के चक्कर में खाली हो गया था गांव

मटियाल पिथौरागढ़ जिले की गणाईगंगोली तहसील का बागेश्वर जिले के सीमा के निकट स्थित गांव है। तहसील मुख्यालय से चौदह किमी दूर इस गांव में पूर्व में चौदह परिवार रहते थे। सुविधाविहीन इस गांव से भी पहाड़ के अन्य गांवों की तरह रोजगार के लिए पलायन हुआ और सभी परिवारों के गांव छोड़ देने से गांव जन शून्य हो गया था। यहां के मकान खंडहर होने लगे थे और खेत बंजर हो गए थे। गांव की तस्वीर एक उजड़े हुए गांव की हो गई थी।

गांव में रहकर कुछ करने का लिया संकल्प

कोरोना काल में लाकडाउन के चलते गांव के पानीपत और मुंबई में चालक और रेस्टोरेंट में काम करने वाले विक्रम सिंह और दिनेश सिंह मेहता भी गांव लौटे। गांव लौटे दोनों युवाओं ने गांव में ही रह कर कुछ कर गुजरने का संकल्प लिया। सरकार के रिवर्स पलायन के प्रयास को साकार करने के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत डेढ़ लाख रुपये का ऋण लेकर खेती शुरू की। इसके साथ ही पशुपालन, सब्जी उत्पादन, बागवानी भी शुरू कर दिए। युवाओं की मेहनत अब रंग लाने लगी। दोनों युवा क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए मिसाल बन गए।

बिजली सड़क से वंचित है गांव

मटियाल गांव बिजली और सड़क सुविधा से वंचित है। ऊपर से जंगली जानवरों का आतंक है, फिर भी गांव को बसाने का संकल्प ले चुके युवा बिना बिजली के ही गांव में रह कर अपने संकल्प का पूरा करने में जुटे हैं। युवाओं के इस प्रयास की जानकारी उद्यान विभाग को मिली । उद्यान सचल केंद्र गणाईगंगोली ने युवाओं का उत्साहवर्धन किया। युवाओं को बीज सहित जानवरों और ओलावृष्टि से बचाव के लिए जाली उपलब्ध कराई। गांव से सड़क की दूरी दो किमी है। दोनों युवा खंडहर हो चुके मकानों की मरम्मत कर रहे हैं ताकि गांव आबाद नजर आए।

अभी भी सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित

सरकार के रिवर्स पलायन को साकार कर रहे दिनेश मेेहता और विक्रम सिंह को पलायन रोकने के लिए बनी सरकारी नीतियों का लाभ नहीं मिल रहा है। स्वरोजगार कर गांव को बसाने के लिए प्रयास कर रहे युवाओं तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि गांव लौट कर गांव बसाने में जुटे युवाओं तक सरकारी विभागों को योजनाओं का लाभ पहुंचाना चाहिए।

क्या कहते हैं दिनेश और विक्रम

घर से दूर जाकर प्राइवेट नौकरी कर परिवार का पालन पोषण करने वाले दिनेश मेहता और विक्रम सिंह का कहना है कि गांव छोड़ चुके लोग अपने गांवों से जुड़े रहें तो पहाड़ के गांव फिर से आबाद रहेंगे। बाहर जाकर छोटी मोटी नौकरी के स्थान पर यदि लोग अपने गांव में ही रह कर कृषि, बागवानी ,पशुपालन का धंधा अपनाएं तो पहाड़ के गांवों के युवाओं को पलायन करने की नौबत नहीं आएगी।

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