देशभर से चारधाम यात्रा के लिए पहुंचे तीर्थयात्री, विभिन्‍न प्रांतों से पकवानों से महका तीर्थनगरी ऋषिकेश का आंगन

उत्तराखंड देहरादून

देहरादून : चारधाम यात्रा के लिए मन में श्रद्धा और भगवान के दर्शन की अभिलाषा लिए कई प्रांतों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु ऋषिकेश पहुंच गए हैं। यहां लगी उनकी रसोई में पक रहे पकवानों की खुशबू से ऋषिकेश का आंगन महक रहा है।

सभी श्रद्धालुओं के लिए यहां धर्मशालाएं खुलवा दी गईं है। जहां प्रशासन द्वारा तीर्थयात्रियों को शिफ्ट किया जा रहा है। वहीं इन श्रद्धालुओं का कहना है कि चारधाम यात्रा कोई कष्ट नहीं, बल्कि एक असीम आनंद प्राप्त करने का अवसर है।

ऋषिकेश का बस टर्मिनल कंपाउंड ऐसे में अनेकता में एकता का संदेश दे रहा है। यहां विभिन्‍न संस्‍कृतियों का संगम हो रहा है। चारधाम यात्रा के लिए राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश प्रांतों से अलग-अलग संस्कृति से जुड़े हजारों श्रद्धालु ऋषिकेश पहुंचे हैं। दूसरे राज्‍यों से आने वाले तीर्थयात्री बड़े-बड़े समूहों में यात्रा के लिए पहुंचे हैं।

कोरोना संक्रमण काल के दो वर्ष बाद चारधाम श्रद्धालुओं की भारी आमद से गुलजार हो रहे हैं। हजारों किलोमीटर दूर दूसरे प्रांत से पहुंच रहे श्रद्धालु यही उम्मीद लेकर आए हैं कि उन्हें अगले रोज यात्रा पर जाने का अवसर प्राप्त होगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है।

दरअसल, धामों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए शासन ने पंजीकरण के साथ स्लाट की व्यवस्था जारी की है। जिस वहज से यहां पहुंच कर श्रद्धालुओं को पता चल रहा है कि उन्हें धामों के दर्शन करने में समय लगेगा। जिस कारण श्रद्धालु यहां रुके हुए हैं और तरह-तरह के पकवान व पारंपरिक भोजन बना रहे हैं। जिसकी खुशबू से ऋषिकेश शहर महक रहा है।

जालना औरंगाबाद महाराष्ट्र से सोमवार को 150 श्रद्धालुओं का समूह परिवार की तरह ऋषिकेश पहुंचा। यहां सभी लोग बसों से आए हैं। यहां इन्हें नई व्यवस्था के तहत जो स्लाट जारी हुए वह धामों की परंपरागत दर्शन परंपरा के अनुरूप नहीं है। लेकिन हालात को समझते हुए उन्हें नई व्यवस्था भी स्वीकार है। यह अपना परंपरागत भोजन और रसोई को साथ लेकर यात्रा में पहुंचे हैं।

सांझा चूल्हा संस्कृति को जीवित रख रहे इन श्रद्धालुओं के भोजन की जिम्मेदारी 11 महिलाओं के समूह की है। जिसकी मुखिया 60 वर्षीय भोजन माता चंद्रकला ताई हैं। 150 सदस्यों का भोजन यह 11 लोग तैयार करते हैं। बड़े तवे पर एक साथ तीन ज्वार की रोटियां बनती हैं और सभी सदस्यों को एक साथ भोजन परोसा जाता है। भोजन माता के साथ महिलाओं की टोली सभी को भोजन कराने के बाद ही भोजन करती है।

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