नैनीताल। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाया जाने वाला भीमल (Bheemal) एक औषधीय पेड़ है। इसे स्थानीय भाषा में भिकुवा भी कहते हैं। यह पेड़ नैनीताल जिले के कई गांवों में खेत के किनारे काफी संख्या में देखने को मिल जाएंगे, जोकि बहुपयोगी है। इसका वानस्पतिक नाम ग्रेविया ऑप्टिवा है।
पहाड़ का ‘वंडर ट्री’ कहा जाने वाला भीमल का पेड़ काफी फायदेमंद है। इसके पेड़ की पत्तियां शीतकाल में भी हरी रहती हैं, जो जानवरों के लिए चारे का काम करती हैं। इसके पेड़ की पत्तियों को खाने से पालतू जानवर जैसे कि गाय, भैंस, बकरी के दूध की मात्रा बढ़ जाती है। इस दूध से बनने वाला घी भी काफी पौष्टिक होता है।
भीमल से रस्सी भी बनती है
स्थानीय निवासी जानकी बताती हैं कि इस पेड़ का फायदा केवल जानवरों तक ही सीमित नहीं है। इसके पत्ते हटाकर इसकी टहनियों को इकट्ठा किया जाता है और लगभग 15 से 18 दिनों तक इसे पानी या गधेरे में भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। जब यह मुलायम हो जाते हैं, तो इनके रेशे निकालकर उनसे रस्सी बनाई जाती है। यह रस्सी काफी मजबूत होती है। इसे किसी भी तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
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