देहरादून। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू सोमवार को देवभूमि उत्तराखंड पहुंची। इस दौरान उनका भव्य स्वागत किया। एयरपोर्ट पर जनजातीय सांस्कृतिक दलों में लोक नृत्य की ऐसी छटा बिखेरी,जिससे द्रोपदी मुर्मू के चेहरे पर मुस्कान खिल आई। राष्ट्रीय जनतांत्रिक से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मुर्मू इन दिनों समर्थन जुटाने के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा कर रही हैं। इसी क्रम में वह आज देहरादून आई।
इस दौरान जनजातीय सांस्कृतिक टीम की ओर से झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का स्वागत किया गया। स्वागत कार्यक्रम के बाद द्रोपदी मुर्मू ने कचहरी स्थित शहीद स्थल पर पहुंचकर बलिदानी आंदोलनकारियों को श्रद्वांजलि अर्पित की। इसके बाद उन्होंने भाजपा विधायकों और सांसदों के साथ बैठक की।
इस दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक सहित पार्टी सांसद और संगठन के पदाधिकारी मौजूद रहे। बैठक में भाजपा के सभी 47 विधायक और राज्य के लोकसभा व राज्यसभा के सभी आठ सांसद उपस्थित रहे।
झारखंड की राज्यपाल रह चुकीं द्रोपदी मुर्मू को राजग की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है। वह मयूरभंज जिले के रायरंगपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित उपरबेड़ा गांव की रहने वाली हैं। इसी गांव में ही 20 जून 1958 को बिरंची नारायण टुडू के घर पर द्रोपदी मुर्मू का जन्म हुआ था।
द्रोपदी मुर्मू बेहद सीधी-सादी और सरल महिला है। वह आधी आबादी के आर्थिक स्वावलंबन और अहिंसा की प्रबल पक्षधर हैं। मुर्मू झारखंड की पहली राज्यपाल थीं, जिन्होंने कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों सहित लगभग 200 स्कूलों का भ्रमण कर वहां की छात्राओं को जाना। उनकी समस्याओं के निदान के लिए संबंधित पदाधिकारियों को निर्देश भी दिए।
द्रोपदी मुर्मू ने कई गरीब मरीजों को इलाज की राशि अपने विवेकानुदान की राशि से दी है। वे जरूरतमंद छात्र-छात्राओं की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहती हैं। उन्होंने राजभवन में पहली बार इसमें डीबीटी लागू किया था।
द्रोपदी मुर्मू ने झारखंड के राजभवन में 400 किलो वनज का सबसे बड़ा चरखा बनवाया। कोरोना के बाद इस साल फरवरी में जब राजभवन गार्डेन आम लोगों के लिए खोला गया तो यह राष्ट्रीय चरखा बच्चे, बूढ़े और जवान सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बना।
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On average, the mitochondrial disease was diagnosed about four years after the onset of psychiatric symptoms, and 14 years after a physician was seen for diagnoses.