कार्टून के जरिए प्रवासियों को ‘जड़ों’ से जोड़ रही कंचन, पहाड़ के लिए प्यार जगाना उद्देश्य

उत्तराखंड देहरादून

देहरादून : 21 साल के हो चुके उत्तराखंड में अधिकांश पर्वतीय क्षेत्र अब भी मूलभूत सुविधाओं से अछूता है। यही मुख्य वजह है कि पहाड़ से लोग पलायन के लिए मजबूर हैं। ये प्रवासी पहाड़ से दूर रहकर भी अपनी जड़ों यानी संस्कृति और समाज से जुड़े रहें, इसके लिए पहाड़ की बेटी कंचन जदली ने अनूठी पहल की है।

स्वरचित कार्टून चरित्र ‘लाटी’ के माध्यम से कंचन प्रवासियों को अपनी संस्कृति और पर्वों से जोड़े रखने का प्रयास कर रही है। इसके साथ ही कंचन की ‘लाटी’ देश-दुनिया को भी देवभूमि की संस्कृति का दर्शन करा रही है। राज्य में समाज कल्याण, संस्कृति, पर्यटन और महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग भी विभिन्न जागरूकता अभियान के लिए कंचन की लाटी का सहारा ले रहे हैं।

हर पहाड़ी के मन में पहाड़ के लिए प्यार जगाना है उद्देश्य
अपने प्रोजेक्ट का नाम लाटी आर्ट रखने के पीछे का कारण बताते हुए कंचन कहती हैं कि लाटी का अर्थ पहाड़ में प्यारी, सीधी और नादान लड़की होता है। कंचन के अनुसार वह लाटी आर्ट के माध्यम से हर एक पहाड़ी के मन में अपने पहाड़ के लिए प्यार जगाना और उनको अपनी बोली-भाषा से जोड़े रखना चाहती हैं। इस प्रयास से कंचन का उद्देश्य यह भी है कि पहाड़ से पलायन कर गए लोग अपनी जड़ों की तरफ दोबारा लौटें।

बचपन से बनना चाहती थीं कलाकार

  • कंचन जदली मूल रूप से पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लाक के बिल्टिया गांव की रहनी वाली हैं।
  • वर्तमान में उनका परिवार पौड़ी में कोटद्वार में रहता है।
  • पिता सेना में थे, इसलिए उनकी तैनाती विभिन्न जगहों पर रही।
  • इस कारण कंचन की स्कूली पढ़ाई गांव, कोटद्वार और इलाहाबाद में हुई।
  • कंचन बचपन से कला के क्षेत्र में करियर बनना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई कला वर्ग से की।
  • इसके बाद स्नातक और परास्नातक फाइन आर्ट्स से चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कालेज आफ आर्ट्स से किया।
  • पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पोस्टर आदि बनाने का काम शुरू किया।
  • दो-तीन साल वह चंडीगढ़ में रहीं और फिर दिल्ली आ गईं।
  • हालांकि, मेट्रो शहरों की अशांत जीवनशैली और अपनी माटी के लिए कुछ करने की इच्छा करीब दो साल पहले उन्हें वापस पहाड़ ले आई।

पलायन का दर्द महसूस कर शुरू किया अभियान
कंचन बताती हैं कि उत्तराखंड आने के बाद उन्होंने पलायन के दर्द को करीब से महसूस किया। इसी दौरान उन्हें विचार आया कि क्यों न कार्टून के माध्यम से पहाड़ से पलायन कर चुके उत्तराखंडियों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखा जाए।

चूंकि, आजकल लोग इंटरनेट मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं, ऐसे में उन्होंने भी जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए इंटरनेट मीडिया को माध्यम बनाया। अपने अभियान के लिए कंचन ने पहाड़ी लड़की का कार्टून चरित्र ‘लाटी’ बनाया और अपनी आर्ट को लाटी आर्ट नाम दिया।

इस कार्टून चरित्र और गुदगुदाती पंचलाइन से कंचन ने उत्तराखंडवासियों को पहाड़ से जोड़ने की कोशिश शुरू की। उदाहरण के लिए कंचन ने अपने एक चित्र में ‘होगा टाटा नामक देश का नमक, पहाड़ियों का नमक तो पिसयू लूण है’ जैसी गुदगुदाती पंचलाइन के साथ लाटी को नमक पीसते दिखाया है।

इस प्यारे संदेश को देख कर गर्व और प्रेम के मिश्रित भाव एक साथ हिलोरे मारते हैं। साथ ही अपनी संस्कृति के लिए मन में प्रेम उमड़ता है। यही कंचन का उद्देश्य भी है।

कलाकृति भी बनाती हैं जदली

  • वर्ष 2020 में कंचन ने राज्य पुष्प ब्रह्मकमल व राज्य पक्षी मोनाल की कलाकृति और पहाड़ी कला से सजे मग, लाटी की ड्रेस वाले बबल हेड आदि बनाने शुरू किए।
  • ये उत्पाद कंचन www.latiart.com वेबसाइट के माध्यम से लोगों तक पहुंचा रही हैं।
  • देश ही नहीं, श्रीलंका, जर्मनी, अमेरिका में रहने वाले उत्तराखंडी भी इन उत्पादों को पसंद कर रहे हैं।
  • सबसे ज्यादा लोग बबल हेड को पसंद कर रहे हैं। इन उत्पादों से कंचन हर माह 40 से 50 हजार रुपये कमा लेती हैं।
  • फिलहाल, वह यह कार्य अकेले कर रही हैं, मगर मांग बढ़ने पर इसमें अन्य महिलाओं को शामिल कर उन्हें भी सशक्त बनाने की योजना है।

संस्कृति पर काम करने में गर्व महसूस करें
कंचन का कहना है कि बाहर रह रहे लोग गढ़वाली बोलने में शर्म महसूस करते हैं। मैं समझती हूं कि हमें इस पर शर्म करने के बजाय गर्व करना चाहिए। मुझे संस्कृति पर काम करने में अलग आनंद आता है और जितने ज्यादा लोग जुड़ते हैं उतनी खुशी मिलती है।

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