हल्द्वानी : सूर्य उपासना का महापर्व छठ 28 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। हल्द्वानी में रामपुर रोड पर सुशीला तिवारी अस्पताल के पास घाटों पर बेदियों का रंगरोदन कर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
मूलरूप से बिहार व पूर्वांचल में मनाया जाने वाला छठ समय के साथ देश के दूसरे हिस्सों तक पहुंच गया। हल्द्वानी में छठ पूजा की सामूहिक परंपरा 1988 में शुरू हुई मानी जाती है। इस बार छठ महापर्व 28 अक्टूबर से शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा।
शुरुआत में गिने-चुने परिवारों से शुरू हुई परंपरा तीन दशकों में करीब 500 परिवारों तक पहुंच गई है। शंकर भगत व ठेकेदार विक्रम राय ने हल्द्वानी में छठ पूजा की परंपरा शुरू कराई। बाद में छठ पूजा सेवा समिति अध्यक्ष कृष्णा साह और अन्य लोग इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
समिति के महामंत्री मुरारी प्रसाद श्रीवास्तव बताते हैं कि तब पूजा स्थल पर किसी तरह की सुविधा नहीं थी। रामपुर रोड के बराबर से बहने वाली नहर के ऊपर बांस के डंडे डालकर पूजा स्थल तक जाने के लिए जगह बनाई गई। पत्थरों को एकत्र कर पूजा के लिए बेदी तैयार की गई।
समय के साथ छठ पर्व मनाने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। निर्माण कार्य, ठेकेदारी, सरकारी व निजी सेक्टर में कार्यरत कई पूर्वांचली लोग यहीं बस गए हैं। छठ पूजा के लिए अब नहर किनारे 25 से अधिक बेदियां बनी हैं। जहां पर व्रती पूजा करने हैं। पास ही टैंट लगाकर रात्रि जागरण होता है।
कुमाऊं भर पहुंचते हैं पूर्वांचल के लोग
रेलवे, आर्मी, एसएसबी, सीआरपीएफ व आईटीबीपी में कार्यरत पूर्वांचली समाज के लोग पूजा में छुट्टी लेकर हल्द्वानी पहुंचती हैं। छठ पूजा समिति के सचिव सुरेश भगत ने बताया कि हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बागेश्वर पिथौरागढ़, चम्पावत में कार्यरत जवान अपने परिवार सहित हल्द्वानी आते हैं।
समय के साथ छठ पर्व मनाने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। निर्माण कार्य, ठेकेदारी, सरकारी व निजी सेक्टर में कार्यरत कई पूर्वांचली लोग यहीं बस गए हैं। छठ पूजा के लिए अब नहर किनारे 25 से अधिक बेदियां बनी हैं। जहां पर व्रती पूजा करने हैं। पास ही टैंट लगाकर रात्रि जागरण होता है।
कुमाऊं भर पहुंचते हैं पूर्वांचल के लोग
रेलवे, आर्मी, एसएसबी, सीआरपीएफ व आईटीबीपी में कार्यरत पूर्वांचली समाज के लोग पूजा में छुट्टी लेकर हल्द्वानी पहुंचती हैं। छठ पूजा समिति के सचिव सुरेश भगत ने बताया कि हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बागेश्वर पिथौरागढ़, चम्पावत में कार्यरत जवान अपने परिवार सहित हल्द्वानी आते हैं।
नहाय-खाय से होती है पर्व की शुरुआत
छठ में भगवान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। यही एक ऐसा पर्व है जिसमें किसी पुरोहित की जरूरत नहीं होती। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। दूसरे दिन खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है। तीसरे दिन शाम को डूबते सूर्य और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है।
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