चौतरफा हमलों में घिरा एनटीपीसी का 520 मेगावाट का तपोवन-विष्णुगाड़ पनबिजली प्रोजेक्ट संकट में फंस सकता है। जोशीमठ में भू धंसाव का आकलन करने सोमवार को यहां आ रही केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की हाईपावर एक्सपर्ट कमेटी नए सिरे से पड़ताल करेगी। उसके एजेंडे में एनटीपीसी के इस प्रोजेक्ट का अध्ययन भी है।
जोशीमठ के स्थानीय लोगों ने एनटीपीसी के खिलाफ पहले से जंग छेड़ रखी है। रुड़की के राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिक टनल और जोशीमठ के रिसाव के पानी के नमूनों की जांच कर रहे हैं। ये दोनों नमूने मैच कर गए तो इस प्रोजेक्ट पर ताला भी लग सकता है।
दरअसल, एनटीपीसी यहां तपोवन से लेकर विष्णुगाड़ तक 12 किलोमीटर लंबी टनल बना रही है। तपोवन एक सिरा है और विष्णुगाड़ दूसरा। बीच में ऊंची पहाड़ी के ढलान पर जोशीमठ बसा है। एनटीपीसी की योजना तपोवन में बह रही सहायक नदी धौलीगंगा के पानी से बिजली बनाने की है। ये पानी तपोवन से टनल के जरिये एनटीपीसी के पावर हाउस सेलंग तक आएगा। बिजली बनाने के बाद इस पानी को विष्णुगाड़ स्ट्रीम के रास्ते अलकनंदा नदी में छोड़ दिया जाएगा।
पहली नजर में ये प्रोजेक्ट जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं। एनटीपीसी की टनल वैज्ञानिक भाषा में ‘इन सीटू रॉक’ को काटकर बनाई जा रही है। इन सीटू रॉक उस चट्टान को कहा जाता है जो सदियों से यथावत है। यह भूस्खलन के मलबे यानी पत्थरों, चट्टानों या मिट्टी से बना कोई पहाड़ नहीं जैसा कि जोशीमठ का है। मिश्रा कमेटी 1976 की अपनी रिपोर्ट में कह चुकी है कि जोशीमठ इन सीटू चट्टान पर नहीं बल्कि ये भूस्खलन के मलबे से बनी चट्टान पर बसा है।
भू-धंसाव की स्थिति और गंभीर हो गई
उधर, स्थानीय लोगों का पक्का यकीन है कि कहीं न कहीं टनल से रिसाव हो रहा है जिसके कारण जोशीमठ में भू-धंसाव की स्थिति और गंभीर हो गई है। एनटीपीसी ने बाकायदा नक्शा जारी कर समझाने की कोशिश की है कि ऐसा संभव ही नहीं है। क्योंकि ये टनल जोशीमठ से बहुत दूर बन रही है। शहर की सबसे करीबी सीमा से भी नापे तो टनल शहर से कोई एक किमी. दूर है। जोशीमठ शहर का आधा हिस्सा भू-धंसाव की चपेट में है। और ये प्रभावित हिस्सा तो टनल से और दो-ढाई किमी दूर पड़ता है। इतनी दूर किसी टनल का दुष्प्रभाव पड़ना वैज्ञानिक नहीं है। उनका दूसरा तर्क है कि टनल को बनाने के साथ ही उसे मजबूत कंक्रीट से सुरक्षित किया जाता है ताकि एक बूंद पानी लीक न हो। एनटीपीसी का तीसरा तर्क है कि इस परियोजना को शुरू हुए अभी बीस साल भी पूरे नहीं हुए जबकि जोशीमठ में भू धंसाव के संकेत एडविन टी एटकिंग ने अपने हिमालयन गजेटियर में 1886 ई. में ही दर्ज कर लिए थे।
सुरंग खोदने से पहाड़ पर बन गया अतिरिक्त दबाव
ऑलवेदर चार धाम रोड परियोजना पर हाई पावर कमेटी (एचपीसी) के पूर्व अध्यक्ष अब पर्यावरण के लिए काम कर रहे रवि चोपड़ा कहते हैं कि 1976 में मिश्रा समिति ने साफ चेतावनी दी थी कि ये संवेदनशील इलाका है। यहां कोई बड़ा निर्माण कार्य नहीं शुरू किया जाना चाहिए। आखिर ये पहाड़ जोशीमठ का ही हिस्सा है। पहाड़ों में सुरंगें बनेंगी तो उसका असर तो दिखेगा ही। इससे दुनिया का कौन सा वैज्ञानिक इन्कार कर सकता है। हमने सुरंग खोदकर पहाड़ पर अतिरिक्त दबाव बनाया, जिसने एक बड़े जलभृत को छिद्रित कर दिया है।
हमेशा विवादों में रहा प्रोजेक्ट
पवित्र गंगा को भारी जलराशि देने वाली अलकनंदा की घाटी में बन रहे एनटीपीसी तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना को जैसे किसी की नजर लग गई है। गंगा की सहायक नदी के पानी से 13.2 मेगावाट बिजली बनाने के लिए 2006 से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट में एनटीपीसी की अकेली टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) पिछले दस साल से टनल में फंसी हुई है। फिर फरवरी 2021 में प्रोजेक्ट का एक बड़ा हिस्सा आपदा का शिकार हो गया जिसमें टनल में काम कर रहे करीब डेढ़ सौ मजदूर दफन हो गए। इस हादसे से अभी एनटीपीसी उबरा नहीं कि अब वह जोशीमठ के नागरिकों के निशाने पर है। जोशीमठ के आंदोलनकारियों का इल्जाम है कि शहर में पानी के रिसाव की असल जिम्मेदार एनटीपीसी और उसकी टनल है।
दो साल से टनल के भीतर है मशीन, विस्फोट का आरोप
इन सीटू रॉक को काटने के लिए एनटीपीसी को जर्मनी से करोड़ों रुपये की टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) मंगानी पड़ी। जो तपोवन की तरफ से करीब आठ किलोमीटर पहाड़ काटने के बाद टनल में फंस गई। कहते हैं ये टनल दो साल से बीच टनल में फंसी है क्योंकि ये मशीन पीछे नहीं हट सकी। इस टीबीएम को फिर से आगे बढ़ाने के लिए एनटीपीसी एक दूसरी मैनुअल टनल बना रहा है। एनटीपीसी ने 2012 में पावर हाउस बना लिया और 2015 में पानी रोकने के लिए बैराज। पर टनल अब तक मुकम्मल नहीं हुई। प्रोजेक्ट की इसी मुश्किल को देखते हुए स्थानीय लोग आरोप लगा रहे हैं कि एनटीपीसी सुरंग के लिए अब विस्फोटकों का इस्तेमाल कर रहा है। जबकि एनटीपीसी इससे साफ इंकार कर रहा है।
टनल फिलहाल बिल्कुल सूखी है। वर्ष 2020 से टीबीएम इस टनल में फंसी हुई है, जिसे आगे बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं। यहां कोई रिसाव नहीं है। छोटा जो पानी आ रहा है, वह महज चट्टानों का है जो कि आता है और सूख जाता है। टनल औली की तरफ वाले हिस्से में बन रही है। इसका भू धंसाव से कोई संबंध नहीं। जहां नियंत्रित विस्फोट की जरूरत पड़ रही है, उसकी दूरी भी जोशीमठ से करीब 11 किमी है।
– राजेंद्र प्रसाद अहिरवार, परियोजना प्रमुख, एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड़ परियोजनाएनटीपीसी के प्रोजेक्ट और जोशीमठ भू धंसाव पर टीम अध्ययन कर रही है। रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि टनल का इस भू धंसाव से कोई कनेक्शन है या नहीं।
– आर मीनाक्षी सुंदरम, सचिव, ऊर्जा, उत्तराखंड सरकार
Your insights are always on point. What Is Cryptocurrency Crypto
이렇게 좋은 정보를 제공해 주셔서 감사드립니다, 자주 올게요! 방문하다 먹튀레이더