चंद्रबनी में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के पिछले हिस्से में बने इस नशा मुक्ति केंद्र में बहुत सी बातें बड़ी रहस्यमय दिखीं। यहां मरीजों को जिन कमरों में रखा जाता है उन पर बड़े-बड़े ताले लटके हुए हैं। यहां खतरनाक किस्म के चार कुत्तों का पहरा भी बैठाया गया है।
अंदर लोगों को भ्रमित करने के लिए बहुत से सर्टिफिकेट और स्टांप पेपर भी दीवार पर लगाए गए हैं। मामला सामने आने के बाद पुलिस ने प्राथमिक पड़ताल की तो कई बातें सामने आईं। सात कमरों के नशा मुक्ति केंद्र के नीचे छोटे बच्चों का स्कूल संचालित किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि यहां न तो कोई डॉक्टर आता था और न ही कोई मनोचिकित्सक।
ऐसे में आखिर कौन इस नशा मुक्ति केंद्र में इलाज कर रहा था? युवक के शव पर जो निशान हैं, उसे देखकर यही लगता है कि केवल यातनाएं देकर ही उनका नशा छुड़ाया जा रहा था। अब पुलिस जल्द ही इस नशा मुक्ति केंद्र को बंद कराने के लिए प्रशासन को रिपोर्ट भेजने जा रही है। जल्द ही यहां भर्ती लोगों को उनके घर भेजा जाएगा। पुलिस और प्रशासन इसे सील कराने की तैयारी कर रहा है।
जांच के बाद पता चला है कि केंद्र में नशा छुड़ाने के लिए पांच से 20 हजार रुपये लिए जाते थे। सिद्धू के परिजनों से पांच हजार रुपये प्रति माह लिए जा रहे थे।
बताया जा रहा है कि जो जिस फीस में भर्ती होने को तैयार होता, उससे ऐसी ही फीस ले ली जाती थी। पुलिस सभी भर्ती मरीजों के परिजनों से इस संबंध में बात कर रही है।
इस नशा मुक्ति केंद्र के दफ्तर में कई ऐसे कागज और सर्टिफिकेट हैं, जिनसे लोग आसानी से भ्रमित हो जाते हैं। यहां एक नामी डॉक्टर मनोचिकित्सक का पर्चा भी फ्रेम में लगाकर दीवार पर चिपकाया गया है। इस पर्चे पर डॉक्टर ने अपने यहां काम करने वाले कर्मचारी का चरित्र का प्रमाणन किया है। डॉक्टर का नाम देखकर एकाएक यह विश्वास हो जाता है कि शायद डॉक्टर ही उनके पैनल में शामिल हो।
इसके अलावा एक 100 रुपये का स्टांप भी वहां पर लगाया गया है। इस स्टांप पर केवल लीज लेने की बात लिखी है। इसके अलावा इस पर लिखा है कि यह नशा मुक्ति केंद्र आराध्या फाउंडेशन की यूनिट है, जिसे 2015 में बनाया गया था। साथ ही एक संस्था का सर्टिफिकेट भी यहां दीवार पर लगा है।