बच्चों के मन की बात: सीएम धामी से बोले मेधावी- सर, ऐसा इंतजाम करिये, आईएएस की पढ़ाई के लिए पहाड़ न छोड़ना पड़े

उत्तराखंड देहरादून

बच्चों के मन की बात: सीएम धामी से बोले मेधावी- सर, ऐसा इंतजाम करिये, आईएएस की पढ़ाई के लिए पहाड़ न छोड़ना पड़े

पहाड़ों पर पहले की अपेक्षा अब बड़ा बदलाव आया है। यहां स्कूल कालेज बढ़ गए हैं। अधिक विषयों में पढ़ाई भी होने लगी है, लेकिन 12वीं के बाद फिर वही समस्या होती है। सिविल सेवा या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए मैदानी जनपदों में जाना मजबूरी बन जाता है। इसलिए ऐसा कुछ इंतजाम करिए कि शिक्षा पाने के लिए पहाड़ की प्रतिभाओं को घर न छोड़ना पडे।

अभी कई मेधावी मैदानी जनपदों में आने में सक्षम नहीं होते और पिछड़ जाते हैं। यह पीड़ा पहाड़ी क्षेत्रों के बच्चों ने शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत से कही। इस पर डॉ. रावत ने कहा कि जल्द प्रत्येक जिले में ऐसी व्यवस्था बनाई जाएगी। उत्तराखंड के होनहार छात्रों को अमर उजाला की ओर से मुख्यमंत्री के हाथों सम्मान मिला तो छात्रों के चेहरे खिल उठे।

छात्रों से ज्यादा उनके अभिभावक खुश थे। अभिभावकों ने अमर उजाला की इस पहल की खूब सराहना की। सम्मान पाकर छात्रों ने कहा कि उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है कि उन्हें यह सम्मान दिया गया है। उन्होंने कहा, यह तो सफलता की शुरुआत है, अभी और आगे बढ़ना है, रुकना नहीं है। अधिकतर छात्रों ने कहा कि वह सिविल सर्विसेज में जाकर देश की सेवा करना चाहते हैं। वहीं कुछ छात्रों ने बताया कि वह डॉक्टर, इंजीनियर बनना चाहते हैं।

Mann Ki Baat Medhavi Student said to CM Dhami make such arrangements that don't leave mountains to study

बोले छात्र-छात्राएंं

12वीं की परीक्षा में मुझे 96 फीसदी अंक लाकर प्रदेश में छठी और जिले में दूसरी रैंक मिली है। मैंने कोई कोचिंग नहीं ली। मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतने अच्छे अंक आएंगे कि सम्मान मिलेगा। अभी बीए में दाखिला लेने के साथ ही यूपीएससी की तैयारी भी करूंगी। मेरी मम्मी टीचर हैं और पढ़ाई के लिए वह हमेशा प्रेरित करती रहती हैं। – प्रियंका कांडपाल, हल्द्वानी

मुझे 10वीं में 98.6 फीसदी अंक के साथ प्रदेश में चौथी और जिले में पहली रैंक मिली है। इतने अच्छे अंक पाने के बाद जब अमर उजाला की ओर से सम्मान देने के लिए फोन आया तो मेरे घर के सभी लोग बहुत खुश हुए। यहां पर मम्मी पापा के साथ आई हूं। मुख्यमंत्री सर के हाथों सम्मान पाकर जो खुशी मिल रही है उसे मैं बयां नहीं कर सकतीं। -कोमल, उत्तरकाशी

Mann Ki Baat Medhavi Student said to CM Dhami make such arrangements that don't leave mountains to study

10वीं में 97.2 फीसदी अंक के साथ मुझे जिले में तीसरी और प्रदेश में नौवीं रैंक मिली है। हम तीन बहन हैं, मैं सबसे बड़ी हूं। मेरे पापा बहुत सहयोग करते हैं। वह हमेशा पढ़ाई और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। मुझे लगता है कि पढ़ाई मन लगाकर करोगे तो सफलता मिलने से कोई रोक नहीं सकता। बस मन में इच्छाशक्ति होनी चाहिए। – रुद्रांशी, पौड़ी गढ़वाल

12वीं में 97.8 फीसदी अंक के साथ मैंने जिले में तीसरी रैंक पाई है। लेकिन असली सफर तो अब शुरू हो रहा है। आगे भी ऐसी ही सफलता मिले इसके लिए बहुत मेहनत करने के साथ ही मन लगाकर पढ़ाई करनी है। मुझे साॅफ्टवेयर इंजीनियर बनना है। इसलिए अब रुकना नहीं है।- आशुतोष व्यास, टिहरी गढ़वाल

 

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10वीं में 97 फीसदी अंक के साथ मुझे जिले में तीसरी और प्रदेश में 10वीं रैंक मिली है। सम्मान समारोह में मम्मी के साथ आई हूं। कोरोना से पापा की डेथ हो गई थी, लेकिन मेरे ताऊ रेंजर गंभीर सिंह धमाना ने मुझे कमजोर नहीं होने दिया। मुझे ह्रदय रोग विशेषज्ञ बनना है, इसके लिए नीट की तैयारी करनी है। -आस्था धमाना, देहरादून

मुझे 10वीं में 97.4 फीसदी अंक मिले हैं। जिले में पहली और प्रदेश में आठवीं रैंक आई है। कैंसर की वजह से 2018 में मेरे पापा की डेथ हो गई थी। मेरे चाचा और बुआ मेरा बहुत सहयोग करते हैं। मैं सिविल सर्विसेज में जाना चाहती हूं। आईएएस ऑफिसर बनकर देश की सेवा करना चाहती हूं। आगे का रास्ता बहुत मुश्किल है, लेकिन मेहनत करके सफलता पानी है। – हिमांशी रावत, देहरादून

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10वीं की परीक्षा में 96.8 फीसदी अंक के साथ प्रदेेश में 11वीं और जिले में दूसरी रैंक मिली है। मैं यीपूएससी की तैयारी करके सिविल सर्विसेज में जाना चाहता हूं। मेरा बड़ा भाई एनडीए की तैयारी कर रहा है। घर में मम्मी पापा और भाई का बहुत सहयोग रहता है। -गौरव सिंह धामी, पिथौरागढ़

10वीं में 98.6 फीसदी अंक के साथ जिले में दूसरी और प्रदेश में तीसरी रैंक मिली है। सिविल सर्विसेज में जाना चाहती हूं। हम पांच बहन और एक भाई है। पापा दुकान चलाते हैं। पढ़ाई में पापा और मम्मी दोनों का बहुत सपोर्ट रहता है। हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं हैं, लेकिन पढ़ाई से संबंधित सभी जरूरतें मम्मी पापा पूरी करते हैं। – शिल्पी बिष्ट, टिहरी गढ़वालमैं