Uttarakhand Congress: एनडी तिवारी की विरासत पर पार्टी में गरमाई सियासत, इस दावेदार ने मचाई हलचल

उत्तराखंड देहरादून नैनीताल

सार

नैनीताल लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। राज्य गठन के समय भी एनडी तिवारी यहां से सांसद थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद विधायक का चुनाव लड़ने पर उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। अब एनडी तिवारी के परिवार से दावेदारी के सुर उठ रहे हैं।

विस्तार

नैनीताल लोकसभा सीट पर पूर्व सांसद एनडी तिवारी के परिवार से दावेदारी के सुर उठे हैं। परिवार के लोगों ने कहा कि इस सीट पर एनडी तिवारी सांसद रहे हैं, उनके परिवार से ही किसी को टिकट मिलना चाहिए। इधर एनडी तिवारी के रिश्तेदार कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया ने भी खुलकर इस सीट से दावेदारी कर कांग्रेस में हलचल मचा दी है।

नैनीताल लोकसभा सीट की पहचान देश के जाने-माने नेता एनडी तिवारी से भी जुड़ी है। वह इस सीट से कई बार सांसद रहे हैं। पदमपुरी जिला नैनीताल निवासी दुर्गा दत्त एनडी तिवारी के सगे रिश्तेदार हैं। उन्होंने कहा कि इस सीट से उनके ही परिवार के किसी व्यक्ति को टिकट देना चाहिए ताकि एनडी तिवारी ने जनता के लिए जो सपने देखे थे वो पूरे हो सकें।

पार्टी का ही फैसला मान्य होगा
इसके बाद कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता और एनडी तिवारी के सगे संबंधी दीपक बल्यूटिया ने खुलकर एलान कर दिया है कि अगर पार्टी उन्हें मौका दे तो वह नैनीताल से अगला लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। कहा कि वह लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हैं और पार्टी के कर्मठ सिपाही रहे हैं। साथ ही कहा कि पार्टी का ही फैसला उनके लिए मान्य होगा। 

दीपक बल्यूटिया ने पिछली बार हल्द्वानी विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस से दावेदारी की थी। एक समय में उनका टिकट पक्का भी लग रहा था लेकिन बाद में टिकट सुमित हृदयेश को मिला और वह चुनाव भी जीत गए। उसके बाद माना जाने लगा कि अब दीपक अगले निकाय चुनाव में कांग्रेस से मेयर पद के लिए टिकट मांग सकते हैं। हालांकि एकदम से उन्होंने नैनीताल लोकसभा सीट का टिकट मांगकर हलचल मचा दी है।

रोहित शेखर ने भी की थी दावेदारी
एनडी तिवारी की दूसरी पत्नी उज्जवला शर्मा के पुत्र रोहित शेखर ने भी कांग्रेस से लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारी की थी। वह अपने पिता एनडी तिवारी के साथ कई बार क्षेत्र में दौरे पर भी रहे। यहां तक कि हरीश रावत सरकार के समय वह अपने पिता के साथ एसटीएच में मौन आंदोलन पर भी बैठे थे। एनडी तिवारी की मृत्यु के बाद भी रोहित शेखर के समर्थकों ने उनकी दावेदारी की बात कही थी लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए। बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

राह नहीं आसान और भी दावेदार
दीपक बल्यूटिया की राह आसान नहीं है। चर्चा है कि कांग्रेस के बड़े दलित नेता भी इस सीट से चुनाव लड़ने की मंशा जता चुके हैं। इसके अलावा अन्य बड़े चेहरे भी नैनीताल लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। यह भी है कि तिवारी की मृत्यु के बाद कभी भी उनके नाम पर इस सीट पर कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ा। यहां तक की भाजपा सरकार में सीएम पुष्कर सिंह धामी जिले के दौर के दौरान कई बार एनडी तिवारी का नाम ले चुके हैं। यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने तिवारी को भुला दिया है लेकिन अब तिवारी के नाम पर उनकी विरासत को लेकर कांग्रेस में सियासत शुरू हो गई है।

अच्छा है कि लोग खुद चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे : माहरा
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने दीपक बल्यूटिया की दावेदारी पर कहा कि यह अच्छा है कि कांग्रेस के नेता चुनाव लड़ने के लिए स्वयं इच्छा जता रहे हैं। कहा कि पार्टी में भी टिकट को लेकर सर्वे हो रहा है। उन्होंने स्वयं के इस सीट पर चुनाव लड़ने की संभावना पर कहा कि फिलहाल मैं कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में लगा हूं और इस समय मेरा काम चुनाव लड़ना नहीं बल्कि लड़वाना है।

 

मोदी युग में भाजपा का गढ़ बनी नैनीताल लोकसभा सीट
नैनीताल लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। राज्य गठन के समय भी एनडी तिवारी यहां से सांसद थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद विधायक का चुनाव लड़ने पर उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। बाद में साल 2002 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के डॉ. महेंद्र सिंह पाल इस सीट से सांसद बने। साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर केसी सिंह बाबा जीते।

साल 2009 में उन्होंने भाजपा के बची सिंह रावत जैसे मजबूत चेहरे को हरा दिया। बाद में नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में उपस्थिति के बाद इस सीट पर भाजपा की जीत होती रही। साल 2014 में भगत सिंह कोश्यारी और साल 2019 में अजय भट्ट सांसद बने। इस सीट से एनडी तिवारी का दुर्भाग्य भी जुड़ा है। भाजपा के बलराज पासी से साल 1991 में वह चुनाव हार गए थे। कहा जाता है कि अगर तिवारी तब सांसद बन गए होते तो प्रधानमंत्री भी बने होते। इसके बाद वह इस सीट पर भाजपा की इला पंत से 1998 में भी चुनाव हारे थे।