गौरीकुंड में मंदाकिनी नदी किनारे मलबे के बीच बिखरी पड़ी 10 से अधिक कंडियां भूस्खलन हादसे की विभिषिका को बयां कर रही हैं। कमाई का साधन तो रह गया लेकिन कमाने वाले मजदूर लापता है, जिनकी खोज की जा रही है। दो वक्त की रोटी के लिए ये लोग 16 किमी पैदल मार्ग पर कंडी के सहारे यात्री को पीठ पर लादकर केदारनाथ पहुंचाते थे।
अब खोज के दौरान लापता लोगों का सामान मलबे में मिल रहा है। गौरीकुंड से केदारनाथ तक यात्रियों को धाम पहुंचाने के लिए मजदूर घोड़ा-खच्चर के साथ ही दंडी और कंडी का उपयोग करते हैं। यहां कंडी का संचालन ज्यादातर नेपाली मूल के मजदूर करते हैं, जो यात्री को सोनप्रयाग या गौरीकुंड से अपनी कंडी में बिठाकर चढ़ाई वाले रास्ते से धाम पहुंचाते हैं।
गौरीकुंड में रहने वाले नेपाली मूल के हरि पुन बताते हैं कि उनके गांव के 30 से अधिक युवा इस बार केदारनाथ यात्रा के लिए यहां पहुंचे थे। गर्मी, सर्दी व बरसात में कंडी से यात्री को सकुशल पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है। तब जाकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम होता है। एक यात्री को पहुंचाने में 5 से 6 घंटे लग जाते हैं।
इधर, बीते बृहस्पतिवार रात को हुए भूस्खलन हादसे में नेपाली मूल के कई कंडी संचालक भी लापता हैं, जिनकी कंडियां मंदाकिनी नदी किनारे मलबे में पड़ी हैं।
दूसरी तरफ लापता अमर बोहरा और वीर बहादुर के गृहस्थ जीवन का सामान भी मलबे में पड़ा मिला है।
गौरीकुंड में भूस्खलन होने से तीन लोगों की मौत हो गई है, जबकि 17 लोग लापता हैं। शुक्रवार शाम साढ़े छह बजे अंधेरा होने के कारण रेस्क्यू रोक दिया गया।
शनिवार सुबह से एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, डीडीआरएफ, पुलिस, होमगार्ड, यात्रा मैनेजेमेंट फोर्स के जवान फिर से लापता लोगों की तलाश में जुटे हैं।