Uttarakhand: पुरोला में वन्यजीवों से रक्षा की घेरबाड़ में भी घोटाला, जिलाधिकारी उत्तरकाशी की जांच में खुलासा

उत्तराखंड देहरादून

सार

पार्क क्षेत्र के सुपिन रेंज नैटवाड़ के तहत मनोरा कक्ष संख्या-2 में जंगली जानवरों से मानव एवं फसल सुरक्षा के लिहाज से तारबाड़ एवं सुरक्षा दीवार के निर्माण के लिए मानव वन्यजीव सुरक्षा मद में 9.98 लाख रुपये मंजूर किए गए थे। मामले में जिलाधिकारी स्तर पर जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई अब तक नहीं हुई है।

विस्तार

प्रदेश में मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए सरकार से लेकर हाईकोर्ट तक हल्ला मचा है। इस बीच वन विभाग के अधिकारी ही विभागीय योजनाओं को पलीता लगाने पर तुले हैं। ताजा मामला उत्तरकाशी में स्थित गोविंद वन्य जीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क पुरोला की सुपिन रेंज नैटवाड़ के तहत वन्यजीवों से मानव एवं फसलों की सुरक्षा के लिए लगाई जाने वाली घेरबाड़ में लाखों रुपये के घोटाले का है।

वन अधिकारियों ने बिना काम के ही ठेकेदार को भुगतान कर सरकारी धन का दुरुपयोग किया है। खास बात यह है कि इस मामले में जिलाधिकारी स्तर पर जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई अब तक नहीं हुई है। पार्क क्षेत्र के सुपिन रेंज नैटवाड़ के तहत मनोरा कक्ष संख्या-2 में जंगली जानवरों से मानव एवं फसल सुरक्षा के लिहाज से तारबाड़ एवं सुरक्षा दीवार के निर्माण के लिए मानव वन्यजीव सुरक्षा मद में 9.98 लाख रुपये मंजूर किए गए थे।

इस काम के लिए मार्च 2021 में निविदा भी प्रकाशित की गई, बजट भी जारी कर दिया गया, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हुआ। स्थानीय लोगों को इसकी भनक लगी तो उन्होंने इस मामले की शिकायत तत्कालीन जिलाधिकारी मयूर दीक्षित से की। उनके स्तर पर जांच के लिए लोनिवि और राजस्व की संयुक्त टीम गठित की गई थी। 

तारबाड़ का भुगतान किया गया
जांच में राजस्व निरीक्षक नैटवाड़ और अवर अभियंता लोनिवि पुरोला ने 15 मई 2022 को मौके का संयुक्त निरीक्षण किया था। जांच में यह बात सामने आई थी कि निविदा के अनुसार कोई कार्य नहीं कराया गया। कार्य में स्टील के एंगल एवं तारबाड़ का भुगतान किया गया, जबकि मौके पर पत्थर की दीवार की चिनाई की गई थी। यह दीवार भी वर्ष 2018 में किसी और मद में बनाई गई थी। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि इस काम में सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया है। विभागीय अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदार ने सरकार को करीब 8.23 लाख रुपये की चपत लगाई।

फर्जी दस्तावेजों के आधार पर किया गया भुगतान

इस मामले में तहसीलदार मोरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दस्तावेजों की जांच के दौरान सामने आया कि पार्क क्षेत्र में इस प्रकार के कई अन्य कार्य होना दर्शाया गया है, जो धरातल पर हुए ही नहीं हैं। इन कार्यों का फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भुगतान कर दिया गया।

इन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल

इस मामले में तत्कालीन उपजिलाधिकारी सोहन सिंह सैनी ने जिलाधिकारी को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें तत्कालीन उप निदेशक, रेंज अधिकारी, अनुभाग अधिकारी/ वन दरोगा एवं संबंधित ठेकेदार की भूमिका को संदिग्ध मानते विधिक कार्रवाई की संस्तुति की गई है।

मैं फिलहाल छुट्टी पर हूं। इस मामले में जांच के बाद क्या कार्रवाई हुई, इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता हूं। यह मेरे समय का मामला नहीं है। – मयंक शेखर झा, उप निदेशक, गोविंद वन्य जीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क पुरोला

इस मामले में जिला प्रशासन के स्तर पर जांच पूरी कर रिपोर्ट वन मुख्यालय को भेज दी गई है। प्रमुख वन संरक्षक को दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखा गया है। – अभिषेक रूहेला, जिलाधिकारी, उत्तरकाशी