उत्तराखंड में बीएड दाखिलों की परीक्षा हो या फिर 12वीं की बोर्ड परीक्षा। हर किसी में एक कटऑफ यानी ऐसे अंक तय होते हैं, जिनसे नीचे रहने वालों को अयोग्य या अनुत्तीर्ण माना जाता है, लेकिन सीयूईटी की कोई कटऑफ ही तय नहीं है।
विस्तार
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से इस साल सख्ती से लागू किया गया सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) से दाखिलों का नियम होनहारों के लिए मजाक बनकर रह गया है। इस परीक्षा की न तो कोई कटऑफ है और न ही इससे दाखिलों का कोई मानदंड। जिन विषयों में सीयूईटी नहीं दिया, उनमें ग्रेजुएशन भी कर सकते हैं।
उत्तराखंड में तो संबद्ध कॉलेजों में इसे लागू करने का नियम बेहद पेचीदा बन गया है। आइए बताते हैं सात ऐसी वजह, जिनके कारण होनहार खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
1- कटऑफ तय नहीं : मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की कॉमन परीक्षा नीट यूजी हो या इंजीनियरिंग दाखिलों की परीक्षा जेईई मेन व जेईई एडवांस। उत्तराखंड में बीएड दाखिलों की परीक्षा हो या फिर 12वीं की बोर्ड परीक्षा। हर किसी में एक कटऑफ यानी ऐसे अंक तय होते हैं, जिनसे नीचे रहने वालों को अयोग्य या अनुत्तीर्ण माना जाता है, लेकिन सीयूईटी की कोई कटऑफ ही तय नहीं है। अगर किसी के अंक शून्य से नीचे माइनस में भी चले गए तो शिक्षण संस्थानों में दाखिला ले सकता है। ऐसे में प्रवेश परीक्षा का मतलब किसी को समझ ही नहीं आया।
2- विषय कोई, दाखिला किसी और में : सीयूईटी में ग्रेजुएशन के विषयों के चयन को लेकर विषयों का विकल्प दिया गया था। जैसे बीए में दाखिला लेना है तो जनरल टेस्ट देना है। बीएससी में दाखिला लेना है तो संबंधित विज्ञान के विषयों में सीयूईटी देना था। जो जिन विषयों में सीयूईटी देता, उन्हीं में दाखिला मिलता लेकिन यहां सब उल्टा है। अगर किसी सुसंगत विषय में सीयूईटी नहीं दिया है तो भी उसमें ग्रेजुएशन में दाखिला ले सकते हैं।