दरकते पहाड़, धंसती जमीन: पहाड़ों में रिसकर तबाही मचा रहा बारिश का पानी, दो महीने में 78 लोगों की मौत

उत्तराखंड देहरादून

सार

इसरो का भारत का भूस्खलन एटलस भी कहता है कि 1988 और 2022 के बीच उत्तराखंड में भूस्खलन की 11,219 घटनाएं दर्ज की गई हैं। वर्ष 2015 से अब तक उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाओं में 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

विस्तार

उत्तराखंड में मानसून की बारिश घातक सिद्ध हो रही है। दो महीने पहले शुरू हुई बारिश के बाद से प्राकृतिक आपदाओं में 78 लोग मौत के मुंह में चले गए, जबकि 47 लोग घायल हुए हैं, वहीं 18 अब भी लापता हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक मृत्यु भूस्खलन के कारण हुई हैं।

राज्य का कोई ऐसा पर्वतीय जिला नहीं है, जहां भवनों और सड़कों को भूस्खलन के कारण नुकसान नहीं पहुंचा हो। विशेषज्ञों की मानें तो बारिश का पानी पहाड़ों में रिसकर भूस्खलन का बड़ा कारण बन रहा है। इस वर्ष मार्च में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदी केंद्र (एनआरएससी) भूस्खलन पर आधारित मानचित्र रिपोर्ट में उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में भूस्खलन से खतरा बताया था।

इस रिपोर्ट के अनुसार, रुद्रप्रयाग जिले को देश में भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा है, जबकि भूस्खलन जोखिम के मामले में देश के 10 सबसे अधिक संवेदनशील जिलों में टिहरी दूसरे स्थान पर है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड का 72 प्रतिशत यानि 39 हजार वर्ग किमी क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित है।

इसरो का भारत का भूस्खलन एटलस भी कहता है कि 1988 और 2022 के बीच उत्तराखंड में भूस्खलन की 11,219 घटनाएं दर्ज की गई हैं। वर्ष 2015 से अब तक उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाओं में 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इस वर्ष अकेले रुद्रप्रयाग जिले में 15 जून से अब तक प्राकृतिक आपदाओं में 19 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है।

केदारनाथ यात्रा मार्ग के पास गौरीकुंड में चार अगस्त को हुए भूस्खलन के बाद से 15 अन्य लोग लापता हैं। वैज्ञानिक और स्थानीय लोग चिंतित हैं, क्योंकि मानसून के एक महीने से अधिक समय शेष रहते हुए पिछले साल की तुलना में लगभग पांच गुना ज्यादा भूस्खलन हुआ है। राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र की ओर से जारी डाटा के अनुसार, 2022 में 245 की तुलना में इस वर्ष 1,123 भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं।

360 से अधिक डेंजर स्लिप जोन चिह्नित

अल्मोड़ा-95, बागेश्वर-14, नैनीताल-15, पिथौरागढ़-4, चंपावत-3, उत्तरकाशी-7, चमोली-27, रुद्रप्रयाग-33, टिहरी-96, देहरादून-14, पौड़ी-22, हरिद्वार-3
(आंकड़े लोनिवि के अनुसार)

बारिश के पैटर्न में बदलाव भी बन रहा वजह

एचएनबी गढ़वाल विवि के प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल का कहना है कि बारिश के पैटर्न में बदलाव, बादल फटने, अचानक बाढ़ और मूसलाधार बारिश जैसी मौसम की घटनाओं में वृद्धि भूस्खलन का एक बड़ा कारण हैं। पहाड़ों में निरंतर सड़क और सुरंग निर्माण से जुड़े बुनियादी ढांचे का विकास भी एक बड़ा कारण हैं। वहीं, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला का कहना है कि भूस्खलन गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के तहत मिट्टी और चट्टान के किसी भी ढलान वाले हिस्से को दर्शाता है। एक पहाड़ी राज्य होने के नाते, उत्तराखंड भूस्खलन सहित प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है। बारिश के साथ समस्या बढ़ जाती है, क्योंकि लगातार वर्षा ढलान की प्राकृतिक स्थिरता को बिगाड़ देती है।

चमोली : डरा रही अतिवृष्टि, सैकड़ों परिवार शिविरों में

एक जनवरी को जोशीमठ में भूधंसाव के बाद से हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। सरकार की नजरें मानसून के खत्म होने पर टिकी हैं। उसके बाद ही जोशीमठ के भविष्य को लेकर कोई फैसला लिया जाएगा। वहीं, 13 अगस्त की रात को हुई अतिवृष्टि से चमोली जिले में आपदा से प्रभावित 90 परिवारों के 366 लोग राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। जिले में जगह-जगह भूस्खलन से लगातार सड़कें बंद हो रही हैं।

उत्तरकाशी : भूधंसाव, दरारों से रातजगा को मजबूर ग्रामीण

भटवाड़ी ब्लाक का मस्ताड़ी गांव कई सालों से भूधंसाव की समस्या से जूझ रहा है। दो सालों में यहां घरों के अंदर जमीन से निकल रहा पानी बड़ा खतरा बना हुआ है। इसके साथ ही कुज्जन गांव में भी भूस्खलन सहित भूधंसाव से करीब 20 से अधिक भवनों को खतरा बना हुआ है। इसके साथ ही इन घरों में भी दरारें लगातार और भी गहरी होती जा रही है।

रुद्रप्रयाग : आपदा में हो चुकी 18 लोगों की चुकी मौत

आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील रुद्रप्रयाग जनपद में अभी तक 18 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 15 लोग अब भी लापता हैं। ऋषिकेश-बदरीनाथ और रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर जगह-जगह भूस्खलन की चपेट में है।

पौड़ी : यमकेश्वर, दुगड्डा में सर्वाधिक प्रभावित गांव

जिले में दुगड्डा, यमकेश्वर और द्वारीखाल विकासखंड सर्वाधिक आपदा से प्रभावित हैं। यमकेश्वर ब्लाक में देवराना, कसाण, भूमिया की सार, गुंडी तल्ली, मराल, जुलेड़ी, बैरागढ़, वीर काटल, कांडी, हर्षू, मुड़गांव और बैरागढ़ समेत 12 गांव आपदा की चपेट में हैं। इन गांवों में कई भवनों पर दरारें पड़ी हैं। कई लोगों को दूसरे स्थानों पर शिफ्ट किया गया है। वहीं, डांडा मंडल क्षेत्र के देवराना, भूम्यासारी और कसाण गांव भू धंसाव की चपेट में हैं। इन गांवों में मोटर मार्ग और गांव का पैदल रास्ते टूट गए हैं।

टिहरी : सात सड़कों, पांच गांवों में हो रहा भू-धंसाव

जिले में बारिश के कारण सात सड़कें धंस गई हैं, जिससे कई दिनों से मार्ग पर आवागमन ठप है, जबकि पांच गांवों में बारिश से भू-धंसाव हुआ है। कोटगांव, भेलुंता, ठेला, निवाला गांव, चौठार, लोदस गांव गांव के नीचे भू-धंसाव हो रहा है। भू-धंसाव से ग्रामीणों के घर, जमीन में दरारें पड़ गई हैं, जिससे गांवों में खतरा बना हुआ है। इन गांव में करीब 250 परिवार प्रभावित हैं, जबकि बारिश से सतेगंल, जाजल-हड़ीसेरा, गुलर-नाई सिलकणी-मठियाली-शिवपुरी, लक्ष्मोली-हिंसरियाखाल-जामणीखाल, नरेंद्रनगर-नीर, लालपुल-भूत्सी, मसराना-किमोई मोटर मार्ग कई स्थानों पर धंसने के कारण आवागमन के लिए बंद है।

देहरादून : कभी भी जमींदोज हो सकते जौनसार बावर के कई गांव

कालसी तहसील क्षेत्र में आने वाले ग्राम खमरोली, ककाड़ी, सिमोग, पाटा व पजिटिलानी आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। सबसे अधिक मार खमरोली गांव को झेलनी पड़ी। जिसकी जद में 33 परिवार आ रहे हैं। घर, आंगन, गोशालाओं के अलावा आंगनबाडी केंद्र, राजकीय प्राथमिक विद्यालय व शिवमंदिर में दरारें आ रही हैं। जैसे ही चटक धूप निकल रही, दरारें बढ़ रही हैं। गांव के पांच परिवार अपने मकान छोड़कर दूसरे स्थानों पर अपना ठिकाना बना रहे हैं। यही हाल ककाडी गांव का भी है, जहां 11 परिवार खतरे में हैं।

भूस्खलन से 10 मकान ध्वस्त, पूरा गांव खाली कराया

ग्राम पंचायत मद्रर्सु के मजरा जाखन मेें हुए भूस्खलन और भूधंसाव से 10 मकान व गोशालाएं ध्वस्त हो गए। घरों के गिरने से सामान क्षतिग्रस्त हो गया। ग्रामीणों को पास के गांव के एक स्कूल में शिफ्ट करा दिया गया है। गांव में आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्रशासन ने गांव के सभी 35 परिवारों के लगभग 300 लोगों को ग्राम पष्टा स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में शिफ्ट कर दिया है।

पहाड़ों में विकास की योजनाएं बनाते हुए बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। उत्तराखंड में पर्वतीय ढलानों में चट्टानों की बनावट, उसके मिश्रित अन्य कण, मिट्टी का प्रकार हर जगह अलग है। भूस्खलन की एक क्षेत्र की घटना को दूसरी जगह हुई घटना से नहीं जोड़ा जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्र में ढलानों पर निर्माण से बचा जाना चाहिए। चिह्नित संवदेनशील क्षेत्रों में बारिश की चेतावनी संग सावधानी बरतने की जरूरत है।
– कालाचंद साईं, निदेशक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी

पूरा हिमालयी क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील है। एनआरएसी की रिपोर्ट के आधार पर विस्तृत अध्ययन होना चाहिए। भूस्खलन से वास्तविक नुकसान कितना है। कितनी आबादी को वह प्रभावित कर रहा है। इससे नीति नियामक यह तय कर सकते हैं कि उन्हें किस तरह की योजना बनानी है।
– डॉ. डीपी डोभाल, वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक