वर्तमान में शहरों और महानगरों में अधिकतर भवन भूकंप तकनीक आधारित कॉलम और बीम की संरचना के आधार पर बनाए जा रहे हैं तो कहा जा सकता है भूकंपरोधी भवनों की संख्या बढ़ रही है।
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तकनीक का सही इस्तेमाल नहीं होने की स्थिति में भूकंप आने पर भूकंपरोधी इमारतें भी आपका साथ छोड़ सकती है। चिंताजनक यह है कि बिल्डिंग बनाते समय तकनीक के इस्तेमाल की पड़ताल निर्माण के दौरान ही हो सकती है। बिल्डिंग बनने के बाद इसे परखा नहीं जा सकता। ऐसे में यह जरूरी है कि निर्माण के समय ही बहुमंजिला इमारतों का ऑडिट हो ताकि छह से अधिक मैग्निट्यूड के भूकंप में भी आपके भवन सुरक्षित रहें। यह बात मंगलवार की दोपहर को भूकंप के आने के बाद बातचीत के दौरान आईआईटी रुड़की के भूकंप इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर योगेंद्र सिंह ने कही।
वर्तमान में शहरों और महानगरों में अधिकतर भवन भूकंप तकनीक आधारित कॉलम और बीम की संरचना के आधार पर बनाए जा रहे हैं। कहा जा सकता है कि भूकंपरोधी भवनों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन आईआईटी रुड़की के भूकंप वैज्ञानिक प्रो. योगेंद्र सिंह का मानना है कि भूकंप एक प्राकृतिक एवं संवेदनशील मुद्दा है। यह जरूरी नहीं है कि कॉलम और बीम आधारित संरचना पर बनी बहुमंजिला बिल्डिंग भूकंपरोधी सभी मानकों को पूरा करती हो। ऐसे में बड़े भूकंप में ऐसी संरचना वाले भवनों को भी नुकसान पहुंच सकता है। उन्होंने बताया कि बहुमंजिला भवनों में जो सीमेंट और सरिये के कॉलम खड़े किए जाते हैं। उनमें कॉलम को आपस में और कंक्रीट के साथ मजबूत जोड़ बनाने के लिए कॉलम को चारों और सरिये (हूप) से बांधा जाता है।
मानकों के अनुसार्, यह हूप प्रत्येक 100 मिलीमीटर की दूरी पर बांधा जाना चाहिए। इसी तरह बीम डालते समय इस हूप की दूरी 150 मिलीमीटर पर होनी चाहिए। इस निर्धारित दूरी पर हूप बांधने से ही बिल्डिंग में भार और इसकी प्रकार की हलचल को सहने की क्षमता आती है। इसके अलावा छत आदि में सरिये की लंबाई कम होने पर उसमें सरिया जोड़ा जाता है। मानकों के अनुसार एक सरिये में दूसरे सरिया इस तरह जोड़ा जाना चाहिए कि इसकी लंबाई सरिये के व्यास की 50 गुना लंबाई (50डी) में एक दूसरे को ओवरलैप करे। तभी छत आदि की ताकत बन पाती है। लेकिन बिना मॉनिटरिंग और बिना क्वालिटी कंट्रोल के इसमें पैसे की बचत करने के लिए लापरवाही होती है। जो भूकंप जैसी आपदा में खतरनाक होती है।