Saturday, December 14, 2024

Uttarakhand: उत्तराखंड में आपदा को लेकर मंथन, लोग नहीं सुधरे तो भयानक होंगे परिणाम

उत्तराखंड

Uttarakhand उत्तराखंड में हर साल आपदा के हालात पैदा होते हैं। ऐसी ही आपदा से बचाव को लेकर हिमालयन सोसायटी आफ जियो साइंटिस्ट ने सोमवार को कार्यशाला आयोजित कर कई सुझाव रखे। कार्यशाला में अलग-अलग इंजीनियरिंग विभागों के अधिकारियों के अलावा विशेषज्ञ भी पहुंचे थे।

HIGHLIGHTS

  1. उत्तराखंड में हर साल आपदा के हालात पैदा होते हैं
  2. बादल फटना, भूस्खलन, तेज बरसात से लोगों का जीवन संकट में पड़ जाता है
  3. आपदा से बचाव को लेकर मंथन किया गया

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी। उत्तराखंड में हर साल आपदा के हालात पैदा होते हैं। बादल फटना, भूस्खलन, तेज बरसात आदि वजहों से लोगों का जीवन संकट में आने के साथ ही जनजीवन भी प्रभावित होता है। ऐसी ही आपदा से बचाव को लेकर हिमालयन सोसायटी आफ जियो साइंटिस्ट ने सोमवार को कार्यशाला आयोजित कर कई सुझाव रखे।

कार्यशाला में अलग-अलग इंजीनियरिंग विभागों के अधिकारियों के अलावा विशेषज्ञ भी पहुंचे थे। एनएचपीसी (जियोटेक) के पूर्व चीफ व सोसायटी के उपाध्यक्ष बीडी पाटनी ने कहा कि पहाड़ पर कई शहर भूस्खलन के केंद्रों में बसे हुए हैं। नदियों के किनारे भी नहीं छोड़े। इस आबादी को बढ़ने से रोकना होगा।

आपदा और भूस्खलन पर हुई चर्चा

इस एक दिनी कार्यशाला का शुभारंभ सचिव आपदा प्रबंधन डा. राजीव सिन्हा ने वर्चुअली शामिल होकर किया। इसके बाद दो चरण में पर्वतीय क्षेत्र की आपदाओं की वजह और बचाव के तरीकों पर विशेषज्ञों ने अनुभव के आधार पर राय दी। जम्मू कश्मीर, हिमाचल से लेकर उत्तर-पूर्व के हिमालयी राज्यों के भूस्खलन, हिमस्खलन व अन्य प्राकृतिक आपदाओं को प्रोजेक्टर के माध्यम से बताते हुए इनके कारण व बचाव के बारे में बताया।

दूसरे राज्यों से सीखने की जरुरत

बीडी पाटनी ने उत्तराखंड के संदर्भ में चर्चा की। उन्होंने कहा कि जौलजीवी, मुनस्यारी, कपकोट समेत कई अन्य कस्बे पहाड़ पर भूस्खलन आशंका वाली जगहों पर बसे हैं। नदियों के किनारे की आबादी भी लगातार बढ़ रही है। इस पर नियंत्रण की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि सिक्किम, मिजोरम जैसे राज्यों में बेहतर काम हुए हैं। इनसे सीखने की जरूरत है। भविष्य की आपदा से बचाव को लेकर अभी से मंथन करना होगा। इसके लिए हमें अनुभवी विशेषज्ञों की जरूरत है। इनके शोध को गंभीरता से लेना होगा। वर्तमान में भारत के पास आधुनिक तकनीक की कोई कमी नहीं है।

कार्यशाला में ये लोग रहे मौजूद

इस दौरान हिमालयन सोसायटी आफ जियो साइंटिस्ट के अध्यक्ष आरएस घरखाल, गोदावरी रिवर मैनेजमेंट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन एचके साहू, पूर्व चीफ विज्ञानी डा. शांतनु सरकार, डीआरडीओ के पूर्व विज्ञानी आरके वर्मा, आइआइटी रुड़की के एसोसिएट प्रोफेसर डा. एसपी प्रधान, सोसायटी के संस्थापक सदस्य नवीन हरबोला समेत अन्य मौजूद थे।

लोग नहीं सुधरे तो पहाड़ बादल फटना नहीं सह सकेगा

बीडी पाटनी का कहना है कि मैदानी क्षेत्र का बढ़ता तापमान पर्वतीय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं की मुख्य वजह है। हिमालय अभी बच्चा पहाड़ है। वह लगातार ऐसी घटनाएं सह नहीं सकेगा। इसलिए हमें औद्योगिक समेत अन्य गतिविधियों पर निगरानी की जरूरत है।

भूस्खलन से मार्ग बंद, टनल को बताया उपाय

हल्की बरसात में पर्वतीय क्षेत्र में मार्ग बंद हो जाते हैं। कुछ केंद्र ऐसे हैं, जहां हर साल भूस्खलन होना तय है। इन जगहों पर टनल मार्ग बेहतर उपाय हो सकता है। कहा कि नई तकनीक में विस्फोट की जरूरत भी नहीं है। बशर्ते विशेषज्ञों के माध्यम से कराए अध्ययन के सुरक्षा मानकों का पालन हो। अटल टनल, खंडाला-लोनाला जैसी टनल का उदाहरण भी दिया गया।

 

बांधों की राकफिल तकनीक पर शोध की जरूरत

बांधों के मामले में उत्तराखंड लगातार आगे बढ़ रहा है। टिहरी डैम राकफिल तकनीक से बना देश का सबसे ऊंचा बांध है। इस तकनीक में क्रंकीट का पहाड़ तैयार होता है, जो कि पानी की मार सहता है। गढ़वाल से कुमाऊं तक बांध निर्माण के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। कार्यशाला में विशेषज्ञों ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र में बांध की राकफिल तकनीक पर शोध की जरूरत है, ताकि भविष्य में खतरा पैदा न हो।