Uttarakhand Metro उत्तराखंड में सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वर्ष 2017 में मेट्रो रेल के रूप में एक गंभीर प्रयास शुरू किया गया था। शुरुआत में मेट्रोलाइट कई तरफ कदम बढ़ाए गए थे लेकिन वर्ष 2018 में केंद्र सरकार की मेट्रो नीति के तहत नियो मेट्रो का प्रस्ताव तैयार किया गया।
- उत्तराखंड में मेट्रो का काम अधर में अटका
- 2017 में मेट्रो रेल के रूप में एक गंभीर प्रयास शुरू किया गया था
शहर की तंग सड़कों पर यातायात का दम किस तरह फूल जाता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। यह हाल तो ऐसा होगा कि क्योंकि, वाहनों का दबाव सड़कों की क्षमता का छह गुना तक (पैसेंजर कार यूनिट के मुताबिक) हो गया है। दूसरी तरफ सार्वजनिक यातायात की स्थिति यह है कि 85 प्रतिशत लोग निजी वाहनों पर ही निर्भर रहते हैं।
सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वर्ष 2017 में मेट्रो रेल के रूप में एक गंभीर प्रयास शुरू किया गया था। शुरुआत में मेट्रोलाइट कई तरफ कदम बढ़ाए गए थे, लेकिन वर्ष 2018 में केंद्र सरकार की मेट्रो नीति के तहत नियो मेट्रो का प्रस्ताव तैयार किया गया।
लंबे समय से लंबित है नियो मेट्रो की डीपीआर
उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने भरपूर कसरत करते हुए नियो मेट्रो की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार की। यह डीपीआर जनवरी 2022 से केंद्र सरकार में लंबित है और लंबे समय से इस दिशा में बात तक नहीं की जा रही। नियो मेट्रो को धरातल पर उतारने के लिए उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने हर संभव प्रयास किए। मेट्रोलाइट से लेकर केबल कार और मेट्रो के तमाम कॉरिडोर पर सर्वे किया गया।
करीब 1650 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार
अंत में शहर तक इसे सीमित रखने के लिए आइएसबीटी से गांधी पार्क और एफआरआइ से रायपुर तक के दो कारीडोर तय किए गए। इन्हीं के मुताबिक करीब 1650 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार की गई। यह कवायद भी कोरे रूप में नहीं की गई, बल्कि इसके लिए कांप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) तैयार किया गया। जिसमें बताया गया कि शहर की सड़कों के दबाव को कम करने के लिए कैसे नियो मेट्रो सहायक साबित हो सकती है।
राज्य सरकार ने भूमि का अड़ंगा भी दूर किया
नियो मेट्रो वैसे तो सड़क के बीचोंबीच पिलर पर संचालित की जाती है और जमीन की खास जरूरत नहीं होती, फिर भी स्टेशन आदि के लिए जमीन की जो जरूरत भी थी, उसकी पूर्ति के लिए राज्य सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। राज्य कैबिनेट ने राज्य के विभागों की भूमि एक रुपये पर 99 साल की लीज पर देने की स्वीकृति प्रदान की। यहां तक कि रक्षा मंत्रालय भी अपनी भूमि देने पर सहमत हो गया।
कसरत पूरी, हसरत फिर भी अधूरी
तमाम औपचारिकताओं की पूर्ति के साथ राज्य कैबिनेट ने मेट्रो की डीपीआर पर दिसंबर 2022 में स्वीकृति प्रदान कर दी थी। इसके बाद जनवरी 2023 में डीपीआर को केंद्र के आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय को भेज दिया गया था। केंद्र सरकार ने कुछ समय विभिन्न सवाल-जवाब किए और मेट्रो रेल कॉरपोरेशन से सभी का जवाब दिया। अब स्थिति यह है कि महीनों बीत जाने के बाद भी इस अहम परियोजना पर तस्वीर साफ नहीं की जा रही है। ये हैं दो कॉरिडोर आईएसबीटी से गांधी पार्क, 5.52 किलोमीटर एफआरआई से रायपुर, 13.90 किलोमीटर
यह हैं प्रस्तावित मेट्रो के स्टेशन
- आइएसबीटी से गांधी पार्क: आइएसबीटी, सेवलाकलां, आईटीआई, लालपुल, चमनपुरी, पथरीबाग, रेलवे स्टेशन, कचहरी, घंटाघर,
- गांधी पार्क एफआरआई से रायपुर: एफआरआई, बल्लूपुर चौक, आईएमए ब्लड बैंक, दून स्कूल, मल्होत्रा बाजार, घंटाघर, सीसीएमसी, आराघर चौक, नेहरू कॉलोनी, विधानसभा, अपर बद्रीश कॉलोनी, अपर नत्थनपुर, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, हाथी खाना चौक, रायपुर
मेट्रो नियो की खास बातें
केंद्र सरकार ने मेट्रो नियो परियोजना ऐसे शहरों के लिए प्रस्तावित की है, जिनकी आबादी 20 लाख तक है। इसकी लागत परंपरागत मेट्रो से 40 प्रतिशत तक कम आती है। इसमें स्टेशन परिसर के लिए बड़ी जगह की भी जरूरत नहीं पड़ती। इसे सड़क के डिवाइडर के भाग पर एलिवेटेड कारीडोर पर चलाया जा सकता है।