Dehradun News देहरादून में सड़कें खुदी पड़ी हैं। निर्माण कार्यों के नाम पर शहरभर में तमाम एजेंसी खोदाई में लगी हैं और इससे उठने वाली धूल-मिट्टी नागरिकों को बीमार कर रही है। बच्चों व बुजुर्गों के लिए तो यह धूल और भी खतरनाक है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। शहर में खोदी गई सड़कों से धूल के उठते गुबार का अंत होता नहीं दिखता। निर्माण कार्यों के नाम पर शहरभर में तमाम एजेंसी खोदाई में लगी हैं और इससे उठने वाली धूल-मिट्टी नागरिकों को बीमार कर रही है। बच्चों व बुजुर्गों के लिए तो यह धूल और भी खतरनाक है।
वर्तमान में स्मार्ट सिटी, लोनिवि, यूयूएसडीए, पेयजल निगम, राजमार्ग खंड जैसी एजेंसी विभिन्न निर्माण कार्य कर रही हैं और इनमें धूल-मिट्टी पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक इंतजाम भी नहीं किए जा रहे। इस कारण सड़क पर आवाजाही के दौरान लोगों का सांस लेना दूभर हो गया है।
धूल से बीमार पड़ रहे हैं लोग
दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक व श्वास एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा. अनुराग अग्रवाल के अनुसार, सड़कों पर उड़ने वाली धूल से अस्थमा के मरीज और जिन्हें एलर्जी है, वह तो परेशान होते ही हैं। उनके साथ सामान्य व्यक्ति भी रोज-रोज धूल का सामना करने से बीमार पड़ सकते हैं। धूल के कण मुंह या नाक के रास्ते शरीर में प्रवेश करते हैं और संक्रमण का कारण बनते हैं। धूल-मिट्टी की वजह से आंखों में भी संक्रमण हो सकता है। इस तरह के मरीजों की संख्या ओपीडी में बढ़ी है।
इन लोगों को सतर्क रहने की है जरूरत
डा. अनुराग अग्रवाल बताते हैं कि लंबे समय तक धूल के बीच रहना खतरनाक है। इसलिए रेहड़ी-पटरी लगाने वाले, यातायात पुलिस कर्मचारी और अधिक समय सड़क पर बिताने वाले लोगों को संभलकर रहने की जरूरत है, क्योंकि धूल के कण दमा, अस्थमा, एलर्जी, चर्म रोग समेत कई अन्य समस्याओं का कारण बनते हैं। ये उन लोगों के लिए और खतरनाक हैं, जो पहले से इन बीमारियों से पीड़ित हैं।
आंखों की भी समस्या
दून मेडिकल कॉलेज में नेत्र रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सुशील ओझा के अनुसार, सड़कों पर उड़ने वाली धूल के कारण आंख में जलन, खुजली व लालिमा आना भी आम बात है। कई लोग धूल के कण जाने पर आंख को रगड़ देते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे समस्या बढ़ सकती है।
सर्दी में होती है ज्यादा परेशानी
वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार धूल, धुआं समेत हानिकारक कणों का मिश्रण व गैसें वातावरण में हर समय मौजूद रहते हैं। हालांकि, वर्षा के कारण ये कण वातावरण में फैल नहीं पाते। जबकि, गर्मी के दिनों में शुष्कता अधिक होने से ये कण हल्के हो जाते हैं और वातावरण की निचली सतह पर इनकी मौजूदगी कम रहती है। इस कारण वर्षा काल और गर्मी में वायु प्रदूषण कम रिकॉर्ड होता है। जबकि, सर्दी के मौसम में हवा में भारीपन होने से धूल के कण काफी नीचे ठहरे रहते हैं और नाक व मुंह के रास्ते शरीर में दाखिल हो जाते हैं।
ऐसे करें बचाव
- मास्क का उपयोग करें। एन-95 या आम मास्क भी हो तो उसे पहनें।
- घर से बाहर निकलते समय मास्क न हो तो मुंह पर कपड़ा भी लपेट सकते हैं। दोपहिया चालक हेलमेट जरूर लगाएं और कार चालक शीशा बंद रखें।
- धूल और धुंआ से बचें। बाहर निकलें तो काला चश्मा पहन लें।