उत्तराखंड स्थापना दिवस: अंतिम पंक्ति में बैठी मातृशक्ति को मुख्यधारा में शामिल करना है…पढ़ें ये खास लेख

उत्तराखंड

सार

Uttarakhand Foundation Day 2023: उत्तराखंड की महिलाएं राज्य के चौतरफा विकास वृद्धि का इंजन रही हैं। पर्यावरण, शराबबंदी और शिक्षा के बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन की निर्णायक आंदोलन में कूदी बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री दीप्ति रावत कहती है कि हमें अंतिम पंक्ति में बैठी मातृशक्ति को मुख्यधारा में शामिल करना है।

विस्तार

उत्तराखंड राज्य की महिलाएं चौतरफा विकास वृद्धि का इंजन रही हैं। ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खुले प्रतिकार से लेकर शराबबंदी, वृक्ष कटान रोकने और राज्य में विवि खोलने व अलग राज्य की लड़ाई तक हर आंदोलन में राज्य की महिलाओं ने नेतृत्व किया और सक्रिय योगदान से इन्हें निर्णायक मुकाम तक पहुंचाया। हमें अंतिम पंक्ति में बैठीं इस मातृशक्ति को मुख्यधारा में शामिल करना होगा।

वर्ष 1930 में ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए अल्मोड़ा में भागुली देवी एवं कुंथी देवी सरीखी आंदोलनकारियों की एक बड़ी संख्या थी। उनके नेतृत्व में अल्मोड़ा नगर पालिका में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के संकल्प को इन वीरांगनाओं ने अंततः झंडारोहण के साथ पूरा किया। तत्कालीन समय की यह एक अप्रत्याशित घटना थी, जिसे प्रायः कम ही लोग जानते हैं।

उत्तराखंड में अपनी शिक्षा के अधिकार के लिए भी यहां की मातृशक्ति 70 के दशक में ही मुखर होने लगी थीं। महिलाओं ने विश्वविद्यालय की मांग को लेकर अपना आंदोलन तब खत्म किया जब लंबे संघर्ष के बाद श्रीनगर में विश्वविद्यालय स्थापना के लिए सहमति बनी। धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में विश्वविद्यालयों के लिए आंदोलन के स्वर उठ खड़े हुए । वर्ष 1972 में पर्वतीय क्षेत्र में गढ़वाल एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय खोलने की प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद ये स्वर शांत हुए।

महिलाओं की भागीदारी से आंदोलन और भी सक्रिय हुआ

वर्ष 1974 की सुबह गांव के पुरुषों की अनुपस्थिति में जब मजदूरों को जंगल में जबरदस्ती घुसाकर वृक्षों को काटने की कोशिश की गई, तो साहसी गौरा देवी, बत्ती देवी, महादेवी, भूसी देवी आदि महिलाओं ने अपने प्रतिरोध से वृक्षों को काटने से बचाया। वर्ष 1986 में नशा नहीं रोजगार दो नारों, के साथ प्रारंभ किए गए आंदोलन में भी महिलाओं ने शराबबंदी के लिए सक्रिय आंदोलनों को जन्म दिया।

वर्ष 1994 में राज्य आंदोलन में उत्तराखंड की महिलाओं के व्यापक रूप कूदने के साथ आंदोलन और भी सक्रिय हो उठा। आंदोलन के दौरान घटित रामपुर तिराहा कांड (मुजफ्फरनगर कांड) आज भी समाजवादी पार्टी की शासन व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। नौ नवंबर 2000 को केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के प्रस्ताव पर तत्कालीन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तराखंड राज्य का सपना पूरा हुआ।

मुख्यमंत्री नारी सशक्तीकरण योजना अच्छा प्रयास 
उत्तराखंड की महिलाएं राज्य की चौतरफा वृद्धि का इंजन रही हैं। अपनी पहाड़ी स्थलाकृति और बड़ी ग्रामीण आबादी के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था ज्यादातर कृषि पर आधारित है। उत्तराखंड की महिलाएं वे गुमनाम नायक हैं जो खेती की परंपराओं को जीवित रखती हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था का समर्थन करती हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्वरोजगार, सरकारी नौकरियों में समर्थन, वित्तीय समर्थन और सामाजिक जागरूकता से उत्तराखंड की नारी शक्तियों को आगे लाने के व्यापक प्रयास अंत्योदय की अवधारणा के साथ चल रहे हैं। हाल ही में उत्तराखंड की महिलाओं को राज्य की सेवाओं में दिया गया क्षैतिज आरक्षण राज्य की मूल निवासी महिलाओं को प्रदेश की सेवाओं में 30 प्रतिशत रोजगार की गारंटी देता है।

पहाड़ों की जवानी को वापस लाने में मातृशक्ति अहम भूमिका निभा सकती हैं। मुख्यमंत्री नारी सशक्तीकरण योजना इस दिशा में एक अच्छा प्रयास है। देवभूमि उत्तराखंड के कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मंचों में इस मातृशक्ति के अनुपात को बढ़ाकर उत्तराखंड के विकास को और भी ज्यादा गतिशीलता प्राप्त होगी। वर्ष 2025 में जब उत्तराखंड अपने राज्य की 25वीं वर्षगांठ मना रहा होगा हमारा यह लक्ष्य होना चाहिए कि अंतिम पंक्ति में भी बैठी मातृशक्ति को मुख्यधारा में शामिल किया जाए हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सांस्कृतिक भिन्नता की देवभूमि में हेलांग जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।