Tuesday, December 24, 2024

देश को जल्द मिलेगी पार्किसंस के उपचार की दवा, अमेरिका में मानव ट्रायल शुरू; कुमाऊं विवि के कुलपति के नाम जुड़ेगी उपलब्धि

उत्तराखंड नैनीताल

गंभीर रोग पार्किंसंस का दुनिया में कहीं उपचार अब तक नहीं है। अब देश ने इस बीमारी के उपचार मिल गया है। जानवरों में परीक्षण सफल होने के बाद अमेरिका में इसका क्लीनिकल परीक्षण आरंभ हो चुका है। इस शोध में कुमाऊं विवि के कुलपति व दिल्ली विवि के प्रो. डीएस रावत मुख्य हैं। एक साल तक इसका परीक्षण होगा साइड एफेक्ट के परीक्षण के बाद…

 नैनीताल।  Parkinson Disease: गंभीर रोग पार्किंसंस का दुनिया में कहीं उपचार अब तक नहीं है। अब देश ने इस बीमारी के उपचार मिल गया है। जानवरों में परीक्षण सफल होने के बाद अमेरिका में इसका क्लीनिकल परीक्षण आरंभ हो चुका है। इस शोध में कुमाऊं विवि के कुलपति व दिल्ली विवि के प्रो. डीएस रावत मुख्य हैं। एक साल तक इसका परीक्षण होगा, साइड एफेक्ट के परीक्षण के बाद इसकी दवा को बाजार में उतार दिया जाएगा।

इस टीम में शामिल कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. डीएस रावत ने बातचीत में शोध के दौरान की चुनौतियों व भविष्य के चरणों पर बातचीत की। प्रो रावत के अनुसार दुनियां में एक करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं इसमें पूरा शरीर या हाथ पांव का काफी ज्यादा कांपना, अकड़न, व्यक्ति की चाल धीमी पड़ जाना या चल न पाना लक्षण हैं, यह बीमारी रोगियों में गंभीर डिप्रेशन का कारण भी बनती है। यह एक न्यूरो-डीजेनेरेटिव विकार है।

यह है लक्षण

इसके सामान्य लक्षण कंपकंपी, अकड़न, धीमी गति और चलने में कठिनाई हैं, इस रोग का कारण मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित सब्सटेंशिया निग्रा में न्यूरॉन कोशिकाओं की मृत्यु है। यह डोपामाइन की कमी का कारण बनता है। कुछ प्रोटीन ऐसे हैं जो डोपामाइन न्यूरॉन्स के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।

प्रो. किम ने साधा संपर्क -जवाब-दरअसल 2012 में प्रसिद्ध जर्नल नेचर कम्यूनिकेशन में मेलेरिया के ट्रीटमेंट पर शोध प्रकाशित हुआ था। जिसके बाद क्लोरोकीन के एक पार्ट व दूसरे पार्ट से दवा बनाने का विचार आया।

शोध में खास प्रोटीन की पहचान की गई, जिसके बाद अमेरिका स्थित मैकलीन अस्पताल के प्रो. किम ने संपर्क साधा और जिसके बाद विकसित अणु (कोड एटीएच 399ए) का मानव चरण क्लीनिकल परीक्षण किया गया।

पेटेंट हासिल करने में कम नहीं बाधाएं

प्रो. रावत के अनुसार, इस शोध की एक लंबी यात्रा रही है। अनुसंधान अनुदान हासिल करने से लेकर पेटेंट दाखिल करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर हस्ताक्षर करने तक अनगिनत बाधाओं का सामना करना पड़ा लेकिन अब हमारा अणु उस स्तर पर है जहां से हम मानवता के लाभ के लिए कुछ उम्मीद कर सकते हैं।

वर्ष 2021 में, दिल्ली विवि व मैकलीन अस्पताल अमेरिका ने एक समझौता किया कि नूरऑन फार्मास्यूटिकल्स इस अणु को विकसित करने के लिए एक भागीदार के रूप में कार्य करेगा। बाद में हानआल बायोफार्मा और डेवूंग फार्मास्युटिकल ने नूरऑन फार्मास्यूटिकल्स के साथ हाथ मिलाया और मानव स्वस्थ प्रतिभागी को खुराक देना शुरू किया। परीक्षण के प्रारंभिक परिणाम 2024 की दूसरी छमाही में आने की उम्मीद है।

प्रो. रावत के अनुसार, पशु माडल अध्ययनों में इस अणु से पता चला है कि यह महत्वपूर्ण न्यूरान एंजाइम को सक्रिय करता है। इससे डोपामाइन न्यूरान की मृत्यु रुक जाती है और यह सिन्यूक्लिन प्रोटीन के एकत्रीकरण को भी रोकता है।

छह सौ योगिकों की जांच की -2012 में मैकलीन अस्पताल के प्रो किम ने पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए एक अणु विकसित करने के में सहयोग के लिए संपर्क किया था। उनकी टीम ने करीब 600 से अधिक नए यौगिकों की जांच की। बोले यह दुर्बल करने वाले इस विकार का कोई इलाज नहीं है। यहां बता दें कि यह बीमारी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी व अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को भी थी।