पांच महीने बंद रहने के बाद आज बुधवार से कॉर्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के लिए नाइट स्टे की सुविधा भी शुरू हो रही है। वर्ष 2009 के बाद इस बार पर्यटकों के प्रवेश का शुल्क बढ़ाया गया है। ऐसे में करीब डेढ़ से दो गुना अधिक शुल्क पर्यटकों को भुगतान करना होगा। हालांकि कॉर्बेट पार्क में नाइट स्टे के लिए एक माह पूर्व ही ऑनलाइन बुकिंग खुल गई थी।
रामनगर। कॉर्बेट नेशनल पार्क में रात में ठहरने का पर्यटकों का इंतजार अब खत्म हुआ। पांच महीने बंद रहने के बाद आज बुधवार से पर्यटकों के लिए नाइट स्टे की सुविधा भी शुरू हो रही है। इसी के साथ ही ढिकाला पर्यटन जोन व दुर्गा देवी पर्यटन जोन में जिप्सी और कैंटर सफारी भी शुरू हो जाएगी। पार्क प्रशासन ने सभी व्यवस्थाएं चाक चौबंद कर ली है।
वर्ष 2009 के बाद इस बार पर्यटकों के प्रवेश का शुल्क बढ़ाया गया है। ऐसे में करीब डेढ़ से दो गुना अधिक शुल्क पर्यटकों को भुगतान करना होगा। हालांकि, कॉर्बेट पार्क में नाइट स्टे के लिए एक माह पूर्व ही ऑनलाइन बुकिंग खुल गई थी और सभी कक्ष फुल हो गए हैं। 15 जून से मानसून सीजन शुरू हो जाता है। कभी भी बरसात की वजह से जंगल के नदी-नाले उफान पर आ जाते हैं। ऐसे में कच्ची सड़क व रास्ते आदि टूटने से पर्यटकों के फंसने से उनकी जान का खतरा बना रहता है। इसे देखते हुए कॉर्बेट पार्क के सभी वन विश्राम गृह में नाइट स्टे व ढिकाला में कैंटर की डे सफारी भी बंद हो जाती है।
हो चुकी है ऑनलाइन बुकिंग
नाइट बुकिंग के लिए विभागीय वेबसाइट के जरिये पर्यटकों ने एडवांस में ऑनलाइन बुकिंग कराई है। दुर्गा देवी पर्यटन जोन भी डे सफारी के लिए बुधवार से पर्यटकों के लिए खुल जाएगा। ढिकाला जोन खुलने व नाइट स्टे की सुविधा भी मिलेगी।
बढ़े शुल्क संग आज से नंधौर के जंगल में होगी सफारी
नंधौर वन्यजीव अभयारण्य में पर्यटकों को आज बुधवार से जंगल का दीदार करने का मौका मिलेगा। इस बार जिप्सी शुल्क 250 से 500 रुपये और प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क 50 से बढ़ाकर 200 रुपये किया गया है। जिप्सी संचालक को अलग से किराया देना पड़ेगा। साल 2013 में हल्द्वानी डिवीजन के 260 वर्ग मीटर जंगल को नंधौर अभयारण्य घोषित किया गया था।
यहां दिखते हैं ये जानवर
पांच रेंजों से जुड़े इस जंगल में बाघ, गुलदार, हाथी, भालू के अलावा दुर्लभ पक्षी और तितली की तमाम प्रजाति भी देखने को मिलती है। नंधौर के जंगल में किसी भी तरह के नए कटान और आंधी-तूफान से गिरने वाले पेड़ों की निकासी भी प्रतिबंधित है।