पूरी दुनिया की नजरें 17 दिनों से उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा पर टिकी थीं। श्रमिकों को बाहर निकालने के कई प्लान बने और जब-जब फेल हुए तो सरकार असहज जरूर दिखी, लेकिन कहीं न कहीं धैर्य बनाए रखा।
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गुजर जाएगा ये मुश्किल वक्त भी बंदे, तू थोड़ा इत्मिनान तो रख। ऑपरेशन टनल की सफलता का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र धैर्य ही था। दीपावली के दिन जहां देश में लोगों के घर रोशनी से जगमगा रहे थे, वहीं अचानक 41 परिवारों के आगे अंधेरा छा जाने की खबरें सामने आईं थी। 17 दिनों में न तो सिलक्यारा की सुरंग फंसे 41 श्रमिकों ने धैर्य छोड़ा और न ही उन्हें बाहर निकालने वालों ने। इस ऑपरेशन को कई बार हताशा, निराशा ने आकर घेरा इसके बावजूद बाहर से अंदर और अंदर से बाहर के लोगों को धैर्य का छोटा सा सुराख रोशन रखे रहा।
श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए जिस ऑगर मशीन से शुरुआत की गई आखिर में उसी राह से उन्हें बाहर निकाला गया। पूरे ऑपरेशन में ऑगर कई बार रुकी, सुरंग में कंपन हुआ, सुरंग में उलझ गए मशीन के कई पार्ट काटकर निकालने पड़े, लेकिन विशेषज्ञ डटे रहे और धैर्य बनाए रखा। कुछ दिनों की मशक्कत के बाद उन्हें उम्मीद हो गई थी कि सबसे सुरक्षित राह यही है। वर्टिकल ड्रिलिंग और टनल के दूसरे छोर को भी खोलने की कवायद शुरू हुई। जब ऑगर ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया तो इसे उन रैट माइनर्स का साहस और धैर्य ही माना जाएगा जिनके हाथों ने उसी पाइप में दिन रात मैनुअल ड्रिलिंग कर 41 परिवारों में उजियारा फैला दिया।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने भी तालमेल के साथ धैर्य का परिचय दिया। पूरी दुनिया की नजरें 17 दिनों से उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा पर टिकी थीं। श्रमिकों को बाहर निकालने के कई प्लान बने और जब-जब फेल हुए तो सरकार असहज जरूर दिखी, लेकिन कहीं न कहीं धैर्य बनाए रखा। प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, जनरल वीके सिंह बारी-बारी न सिर्फ हौसला बढ़ाकर ऑपरेशन को सुगठित करते दिखे बल्कि उनके बयानों ने लगातार अंदर श्रमिकों और बाहर परिवार के लोगों को धैर्य बनाए रखने में मदद की। वहीं विपक्ष के तमाम आरोपों के बीच भी सरकार ने धैर्य बनाए रखा। और विकल्प तलाशती रही।
देसी-विदेशी विशेषज्ञों की इच्छाशक्ति और श्रमिकों का धैर्य बनाए रखने के लिए तमाम तकनीकी उपाय भी काम आए। सबसे पहले उन तक ऑक्सीजन के साथ श्रमिकों का धैर्य जगाने की आवाज पहुंची। उन्हें जीवित रखने के लिए कुछ दिन चना चबेना भेजा गया। फिर बोतल की मदद से खाने-पीने की वो सारी वस्तुएं, जरूरी दवाएं भेजी गईं जो उन्हें स्वस्थ बाहर निकालने में कारगर रहीं। श्रमिकों और उनके परिवारों का धैर्य तब और मजबूत हुआ जब मानव शरीर की पड़ताल करने वाले फ्लैक्सी प्रो कैमरा (इंडोस्कोपी कैमरा) ने श्रमिकों की झलक दिखलाई। एसडीआरएफ ने श्रमिकों के दुखी और दूर से पहुंच रहे परिवार के सदस्यों को अंडर वॉटर कम्युनिकेशन सेट से बात कराकर उन्हें किसी अवसाद में जाने से बचा धैर्य को और मजबूत किया।