Uttarkashi Tunnel Collapse उत्तरकाशी टनल हादसे में फंसे 41 सैनिकों को निकालने के लिए अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों ने अपना पूरा योगदान दिया। 17 दिन चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में देश भर से करीब 2500 कर्मवीरों ने अपना योगदान दिया। कर्मवीरों के इस तप का फल 17 दिन बाद श्रमवीरों की आजादी के रूप में सामने आया। इस पूरे ऑपरेशन के बाद चारों ओर खुशी की लहर है।
उत्तरकाशी। सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमवीरों को बचाने के लिए एक तरफ देश-विदेश में दुआ की जा रही थी तो दूसरी तरफ 2500 कर्मवीर दिन-रात और भूख-प्यास का फर्क भुलाकर पूरे मनोयोग से इस अभियान में जुटे थे। कर्मवीरों के इस “तप” का फल 17 दिन बाद श्रमवीरों की आजादी के रूप में सामने आया।
युद्धस्तर पर चले इस बचाव अभियान में देश की विभिन्न एजेंसियों के 15 वरिष्ठ इंजीनियर और 14 वरिष्ठ अधिकारी शामिल रहे। साथ ही नेशनल हाइवेज इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल) के पांच वरिष्ठ अधिकारी, दो मैनेजर व इंजीनियर, 350 तकनीकी व 450 सहायक कर्मचारियों ने भी अपना योगदान दिया।
उत्तरकाशी के अधिकारी और कर्मचारियों ने झोंकी ताकत
नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी के 825 अधिकारी-कर्मचारी और श्रमिक भी अभियान में जुटे रहे। प्राण रक्षा के इस महायज्ञ में उत्तरकाशी जिले के सरकारी विभाग भी आहुति डालने में पीछे नहीं रहे। उत्तरकाशी के 800 से अधिक अधिकारी-कर्मचारियों की टीम बचाव अभियान की शुरुआत से लेकर श्रमिकों को सुरंग से निकाले जाने और फिर एम्स ऋषिकेश पहुंचाने तक मोर्चे पर डटी रही।
दीपावली पर हुआ था हादसा
12 नवंबर को दीपावली की सुबह सिलक्यारा सुरंग में जब भूस्खलन होने से श्रमिक फंसे तो सबसे पहले उत्तरकाशी के जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला, पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल, यूजेवीएनएल के ईई महावीर सिंह नाथ और अमन बिष्ट सहित जिले में तैनात एसडीआरएफ व एनडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची। इसी टीम ने शुरुआत में बचाव की रणनीति बनाई और विभिन्न एजेंसियों से संपर्क किया।
डेरा डाले रहे अधिकारी
बचाव अभियान के दौरान जिलाधिकारी से लेकर पटवारी तक सिलक्यारा में डेरा डाले रहे। पर्यटन, परिवहन, खाद्य आपूर्ति के अलावा विकास भवन के अधिकारियों को भी अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी। जिले के अन्य सरकारी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी भी पर्दे के पीछे रहकर योगदान देते रहे। इसके लिए बचाव अभियान संपन्न होने के बाद गढ़वाल आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला की पीठ भी थपथपाई।
इंसान से लेकर मशीनरी ने निभाया साथ
हालांकि, बचाव अभियान के दौरान सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के सिलक्यारा में जुटे रहने से विभागों में कामकाज प्रभावित रहा, जो अब पटरी पर लौट रहा है। बचाव अभियान में सबसे महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न टीमों और मशीनों के सिलक्यारा तक परिवहन का रहा। इसके लिए उत्तरकाशी की सरकारी मशीनरी ने सिलक्यारा के पास अस्थायी हेलीपैड तैयार किया। बचाव टीमों के लिए हेलीकॉप्टर, कार्यस्थल तक आने-जाने के लिए वाहन और रहने व खाने की व्यवस्था भी इसी मशीनरी ने की।
मशीनों को पहुंचाने के लिए युद्धस्तर पर हुआ काम
तीन दर्जन से अधिक मशीनों को सिलक्यारा तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई। वह भी तब, जब बचाव अभियान के दौरान लगातार वीआईपी मूवमेंट बना रहा। वन विभाग उत्तरकाशी की टीम ने वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए चयनित स्थल तक सड़क बनाने को करीब 80 पेड़ों का एक ही रात में पतन करवाया।
इसके बाद उत्तरकाशी में तैनात बीआरओ की टीम ने महज 48 घंटे में 1.2 किमी सड़क तैयार की। ड्रिलिंग के लिए पानी और बिजली पहुंचाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं था। इसके लिए ऊर्जा निगम और जल संस्थान के कर्मचारी दिन-रात जुटे रहे। अभियान के दौरान कानून व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती रही। सुरंग तक पहुंचने के लिए पांच बैरियर बनाए गए थे। इन बैरियरों पर दिन-रात कड़ा पहरा रहा। अभियान में स्थानीय ग्रामीणों की भी अहम भूमिका रही।
बचाव अभियान में उत्तरकाशी के सरकारी विभागों का योगदान
विभाग – कर्मचारी
स्वास्थ्य – 106
पुलिस – 25
एसडीआरएफ – 39
एनडीआरएफ – 80
आईटीबीपी – 77
अग्निशमन – 12
जिला आपदा प्रबंधन – 24
जल संस्थान – 46
पेयजल निगम – 7
खाद्य आपूर्ति – 9
सूचना विभाग – 3
यूपीसीएल – 32
लोनिवि – 1
बीआरओ – 160
एनएच बड़कोट – 1
नगर पालिका बड़कोट – 10
वन विभाग – 15