Bhimtal भीमताल व आसपास आदमखोर के आतंक मामले में स्वत संज्ञान लेती जनहित याचिका पर गुरुवार को राज्य की शीर्ष अदालत में सुनवाई हुई। वन विभाग की ओर से बताया गया कि आदमखोर बाघ है। जबकि लोग हमलावर को गुलदार बता रहे हैं। कोर्ट ने पूछा है कि आदमखोर है क्या बाघ या फिर गुलदार। अदालत ने नरभक्षी को चिह्नित करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने को कहा गया है।
नैनीताल। उत्तराखंड में गुलदार और बाघ का आतंक ऐसा हो गया है कि लोग अपने घरों से निकलने में भी डर रहे हैं। नैनीताल में अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है और वन विभाग के हाथ अभी तक खाली हैं। ऐसे में अब ये मामला अदालत तक पहुंच गया है।
भीमताल व आसपास आदमखोर के आतंक मामले में स्वत: संज्ञान लेती जनहित याचिका पर गुरुवार को राज्य की शीर्ष अदालत में सुनवाई हुई। वन विभाग की ओर से बताया गया कि आदमखोर बाघ है। जबकि लोग हमलावर को गुलदार बता रहे हैं। कोर्ट ने पूछा है कि आदमखोर है क्या, बाघ या फिर गुलदार। 28 दिसंबर तक वन विभाग से दोबारा रिपोर्ट मांगी गई है।
विशेषज्ञ कमेटी बनाने का दिया निर्देश
अदालत ने नरभक्षी को चिह्नित करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने को कहा गया है। इस कमेटी में वाइल्ड लाइफ इंडिया के विशेषज्ञ डा पराग निगम भी शामिल होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर वन्यजीव चिह्नित हो जाता है तो उसे ट्रेंकुलाइज किया जाए। कोर्ट ने पूरे क्षेत्र की निगरानी ड्रोन कैमरे से कराने के आदेश दिए गए हैं। न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा व न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने मामले को सुना।
हिंसक जानवर को घोषित किया गया नरभक्षी
भीमताल में अब तक दो महिलाओं व एक युवती को वन्यजीव मार चुका है। हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के आदेश का स्वतः संज्ञान लेते हुए पूर्व में भी कोर्ट ने सुनवाई की थी। अदालत ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमति देने के प्रावधान के बारे में जानकारी मांगी।
वन विभाग के हाथ हैं खाली
वन विभाग की ओर से कहा गया कि वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 13ए में खूंखार हमलावर जानवर को मारने की अनुमति दी जाती है। भीमताल के आदमखोर को पकड़ने व पहचान करने के लिए पांच पिंजरे, 36 कैमरे लगाए गए हैं। न्यायालय ने पूछा कि हमलावर गुलदार था या बाघ? उसे मारने के बजाय रेस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए।
क्या है वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 13ए
न्यायालय ने कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की संतुष्टि होनी जरूरी है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 13ए के तहत किसी जानवर को पहले उस क्षेत्र से खदेड़ जाएगा, फिर ट्रैंकुलाइज कर रेस्क्यू सेंटर में रखा जाएगा और अंत में मारने जैसा अंतिम कठोर कदम उठाया जा सकता है, लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए।