यह लोग अल्मोड़ा पिथौरागढ़ चंपावत बागेश्वर आदि जगहों से तो हल्द्वानी पहुंच गए थे। मगर यहां आकर फंस गए। ज्यादातर लोग नौकरी से दो-तीन दिन की छुट्टी लेकर गांव आए थे लेकिन आंदोलन के कारण वापसी करने में पसीने छूट गए। कुछ ऐसे भी थे जिनकी शाम को दिल्ली से फ्लाइट थी। मगर मन में असमंजस था कि राजधानी तक पहुंचेंगे या नहीं।
हल्द्वानी। ट्रेनों की संख्या ज्यादा न होने से कुमाऊं के लोगों के लिए रोडवेज बसें ही दिल्ली समेत अन्य जगहों पर पहुंचने का अहम साधन है। मगर हड़ताल के कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। अल्मोड़ा निवासी दो युवकों को मुरादाबाद जाना था।
डेढ़ दिन इंतजार के बाद बस मिल सकी। स्टेशन के ठीक बगल में होटल के कमरे में रात काटी। थोड़ी-थोड़ी देर में स्टेशन पहुंच बस का पता करने में लगे थे। चालकों की हड़ताल के कारण सोमवार को भी बस स्टेशन में लोग परेशान दिखे।
यह लोग अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर आदि जगहों से तो हल्द्वानी पहुंच गए थे। मगर यहां आकर फंस गए। ज्यादातर लोग नौकरी से दो-तीन दिन की छुट्टी लेकर गांव आए थे लेकिन आंदोलन के कारण वापसी करने में पसीने छूट गए। कुछ ऐसे भी थे जिनकी शाम को दिल्ली से फ्लाइट थी।
मगर मन में असमंजस था कि राजधानी तक पहुंचेंगे या नहीं। मुक्तेश्वर के एक बुजुर्ग को पोती को लेकर ऋषिकेश पहुंचना था। मामला पोती की नौकरी से जुड़ा था। लेकिन दूसरे दिन दोपहर तक को इंतजार खत्म नहीं हो सका।
परेशान यात्री
सोमवार सुबह गांव से पहुंचा था। दिन भर मुरादाबाद की बस में इंतजार किया। न मिलने पर स्टेशन के ठीक सामने ही कमरा लिया। मंगलवार दोपहर को बामुश्किल गाड़ी मिली। महेश आर्य, निवासी अल्मोड़ा मुरादाबाद में होटल लाइन में नौकरी करता हूं। सोमवार दिन भर गाड़ी न मिलने पर पास में कमरा लेकर रहा।
मंगलवार को छह घंटे इंतजार के बाद दिल्ली की बस में सीट मिली। अमित, निवासी दन्या पोती संग ऋषिकेश जाना था। एक दिन इंतजार कर उसे रात में रिश्तेदार के वहां छोड़ा। खुद स्टेशन पर ही रात काटी। मंगलवार दोपहर तक कोई बस नहीं मिली थी।