Lok Sabha Election 2024: उत्तराखंड में बरकरार रहेगा मिथक या फिर टूटेगा…जानिए कैसा रहा है चुनावी इतिहास

उत्तराखंड देहरादून

राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में यह पांचवां लोकसभा चुनाव हो रहा है। पहला लोस चुनाव 2004 में हुआ था। उस समय प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस काबिज थी।

उत्तराखंड का चुनावी इतिहास कई अनूठे रंगों और मिथकों को समेटे हुए है। इनमें एक मिथक 2019 के लोकसभा चुनाव में टूटा था। 2014 के लोस चुनाव तक यह धारणा बन गई थी कि राज्य में जिस दल की सरकार होगी, उसका संसदीय चुनाव में बेड़ा

पार नहीं हो सकता। 2019 के लोस चुनाव में भाजपा ने इस मिथक को तोड़

अब 2024 के चुनाव में एक बार फिर सियासी हलकों में सवाल तैर रहा है कि यह मिथक फिर टूटेगा या बरकरार रहेगा। प्रदेश में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है और अबकी बार इस मिथक को तोड़ने का दारोमदार उन्हीं के कंधों पर है।राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में यह पांचवां लोकसभा चुनाव हो रहा है। इससे पहले उत्तराखंड चार लोकसभा चुनाव का गवाह रह चुका है। पहला लोस चुनाव 2004 में हुआ था। उस समय प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस काबिज थी। एनडी तिवारी सरकार के समय हुए इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ नैनीताल सीट पर संतोष करना पड़ा था। वह चार सीटें हार गई थी।

मिथक को दोबारा तोड़ने की चुनौती
2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। उस वक्त मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी (सेनि) मुख्यमंत्री थे। उनके समय में हुए लोस चुनाव में भाजपा पांचों सीटें हार गई थीं। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव आए। उस दौरान प्रदेश में कांग्रेस राज था। भाजपा में नरेंद्र मोदी की लहर उठने लगी थी। इस चुनाव में कांग्रेस को पांचों सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने लोस की पांचों सीटें जीत लीं। यानी एक फिर राज्य में जिसकी सरकार, लोस में उसकी हार का मिथक बरकरार रहा।

जब 2019 के लोकसभा चुनाव आए तो भाजपा प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज थी, लेकिन इस बार भाजपा ने लोकसभा की पांचों सीटें जीत कर मिथक को तोड़ दिया। राज्य के मतदाताओं पर पीएम मोदी का ऐसा जादू चला कि विधानसभा चुनाव में बारी-बारी से सरकार बदलने का मिथक 2022 विस चुनाव में टूट गया। भाजपा ने 2017 के बाद 2022 में अपनी सरकार बनाने का कारनामा कर दिखाया। अब 2024 के लोस चुनाव में भाजपा के सामने पूर्व में बने मिथक को दोबारा तोड़ने की चुनौती है।