उत्तराखंड में राज्य बनने के एक दशक तक एनकाउंटरों से कई बदमाशों का सफाया हुआ था। इनमें कई एनकाउंटर चर्चित हुए और एनकाउंटर के डर से कई बदमाश सरेंडर कर गए। खबर में पढ़िए चर्चित एनकाउंटर के बारे में…
तराई भाबर में अविभाजित यूपी और राज्य बनने के एक दशक तक एनकाउंटरों से कई बदमाशों का सफाया हुआ था। इनमें कई एनकाउंटर चर्चित हुए और एनकाउंटर के डर से कई बदमाश सरेंडर कर गए। रणवीर एनकाउंटर से पुलिस की छवि पर दाग लगा तो एनकाउंटर शब्द पुलिस के जेहन से ही गायब हो गया। अब 14 साल नौ महीने बाद बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड में हत्यारोपी अमरजीत के एनकाउंटर की गूंज सुनाई दी है।
जानकारी के अनुसार 90 के दशक में तराई आतंकवाद की दहशत में था। आतंकवादियोें ने कई लाेगों के साथ ही सीओ सहित तमाम पुलिस कर्मियों को निशाना बनाया था। 1991 में खटीमा के मझौला बिरिया में पुलिस ने परमजीत सिंह पम्मा और यदुवेंदर सिंह यादु का खटीमा के मझौला बिरिया में एनकाउंटर किया था। बेहद खुंखार आतंकी यादु पर पंजाब सरकार ने 20 लाख से अधिक का इनाम रखा था और उस पर सैकड़ों लोगाें की हत्या का आरोप था।
1991 में जसपुर में आतंकी बलविंदर सिंह बिंदा और 1993 में पंतनगर क्षेत्र में आतंकी हीरा सिंह का एनकाउंटर हुआ था। आतंकवाद के सफाए के कुछ साल बाद अपराधों का ग्राफ बढ़ गया। यूपी से अलग होने के बाद नैनीताल और ऊधमसिंहनगर में बड़े अपराधी और माफिया डाॅन तक सक्रिय हो गए थे। दोनों जिलों में 2005 से 2009 तक कई बदमाशों के एनकाउंटर हुए लेकिन रणवीर एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों के जेल जाने के बाद एनकाउंटर पर रोक लग गई थी।
रिटायर्ड सीओ जेसी पाठक बताते हैं कि पहले लूट, डकैती और हत्याओं के केस बहुत ज्यादा होते थे और सजा कम केसों में हो पाती थी। बदमाशों को एनकाउंटर का खौफ रहता था। लेकिन न्यायालयों के कठोर रुख से बदमाशों को कड़ी सजाएं हो रही हैं।