Dehradun News: जागरूक न हुए तो आने वाली पीढ़ी को पानी के लिए लड़ना होगा

उत्तराखंड देहरादून

पेयजल मूलभूत जरूरत है, लेकिन जिस तरह से जल संकट उत्पन्न हुआ है अब हमें सचेत होना होगा। अब भी पानी की बचत के लिए जागरूक नहीं होंगे तो आने वाली पीढ़ी को पेयजल के लिए लड़ना होगा। जल संरक्षण के लिए सरकारें जल केंद्र भी बना सकती हैं। अमर उजाला कार्यालय में हुए अपराजिता कार्यक्रम के दौरान दून विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के डॉ. राजीव शरण आहलूवालिया ने यह बात कही।अपराजिता कार्यक्रम में शहर की महिलाओं ने भाग लिया। इस दौरान जल संरक्षण और जल गुणवत्ता पर चर्चा हुई। डॉ. राजीव ने कहा कि पेयजल संरक्षण के लिए सरकारें लगातार काम कर रही हैं, लेकिन लोगों को भी जागरूक होना होगा। डॉ. राजीव ने कहा कि हमें बारिश के पानी का भी संरक्षण करके अन्य कार्यों में उपयोग करना चाहिए। महिलाओं को सब्जियां धोने के बाद का पानी फेंकना नहीं चाहिए। इसके अलावा वाशिंग मशीन में भी पानी का अधिक दुरुपयोग होता है। यह पानी एकत्रित करके बगीचे में या अन्य साफ सफाई में उपयोग किया जा सकता है। वहीं, आरओ में पानी शोधित होता है तो बहुत पानी बह जाता है। इस पानी को भी एकत्र करना चाहिए। आरओ का पानी बचा लें तो 50 फीसदी पानी बच सकता है। पेयजल की गुणवत्ता पर बात करते हुए डॉ. राजीव ने कहा कि पानी में टीडीएस की मात्रा जांचते रहना चाहिए। आरओ के पानी में टीडीएस की मात्रा 50 से 150 या अधिकतम 300 मिली ग्राम प्रति लीटर तक होनी चाहिए।

बारिश और बर्फबारी समय पर नहीं हो रही

डॉ. राजीव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश और बर्फबारी सही समय पर और निश्चित समय के लिए नहीं हो रही है। पहले बर्फबारी नवंबर से ही होती थी, लेकिन अब दिसंबर से अप्रैल तक होती है। अप्रैल में जब गर्मी शुरू हो जाती है तो बर्फ भी जल्दी गलने लगती है। ऐसे में बर्फ पानी के तौर पर स्प्रिंग (प्राकृतिक जल स्रोत) तक नहीं पहुंच पाती। गर्मियों में प्राकृतिक जल स्रोत सूखने का यह भी एक अहम कारण है। यही बर्फबारी जब नवंबर से शुरू हो जाती है तो बर्फ धीरे-धीरे गलती है। इससे स्प्रिंग को पानी मिलता रहता है।