सार
विस्तार
सूचना प्रौद्योगिकी विकास एजेंसी (आईटीडीए) ने कई विभागों के कंप्यूटरीकरण के लिए यूपी हिल इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन लिमिटेड (हिल्ट्रॉन) को 13 करोड़ 89 लाख रुपये दिए। इसमें से एक करोड़ 65 लाख की धनराशि का आज तक पता नहीं। इसके ब्याज का भी कोई आकलन नहीं है।
ऑडिट आपत्ति में ये तथ्य सामने आने के बाद हिल्ट्रॉन ने अब 19 साल बाद इसे लौटाने का दिलासा दिया है। ऑडिट आपत्ति में पता चला कि आईटीडीए ने वर्ष 2005 से 2006 के बीच खाद्य एवं आपूर्ति विभाग, वन विभाग, तहसील कार्यालयों के कंप्यूटरीकरण और आईटी संबंधी कार्यों के लिए 13.89 करोड़ की धनराशि दी थी।
इसमें से 1.65 करोड़ का हिसाब 15 साल बाद तक भी नहीं दिया गया। ऑडिट आपत्ति में ये भी कहा गया कि आईटीडीए ने इस पर कार्रवाई नहीं की, न ही कोई एफआईआर कराई। आईटीडीए के तत्कालीन अफसरों की मंशा पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। सवाल ये भी उठ रहा कि 2005-06 के मामले में 19 साल बाद तक भी पैसा नहीं लौटाया गया।
ऑडिट आपत्ति पर हिल्ट्रॉन की ओर से दिए गए जवाब को देखें तो इस लापरवाही का पता चलता है। हिल्ट्रॉन के सलाहकार एसके विश्नोई की ओर से जवाब दिया गया कि कुल धनराशि एक करोड़ 45 लाख 81 हजार 772 रुपये है, जो लौटाई जानी है।
बताया, 20 लाख रुपये के कार्यों का उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रेषित किया जा चुका है। चूंकि, 2018 में हिल्ट्रॉन को समाप्त कर सभी गतिविधियां पूरी तरह से बंद कर दी गई थी। अभिलेखों की स्टेच्युरी ऑडिट प्रक्रिया जारी है। इसके बाद बची हुई इस धनराशि का अनुमोदन लेकर निस्तारित करते हुए आईटीडीए को लौटाया जाएगा। सवाल ये है कि 2018 में हिल्ट्रॉन की बंदी से पहले के वर्षों में इस ओर किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया।