उत्तराखंड के अरविंद ने अपने घर में बना डाले 100 घरौंदे, 14 साल से गौरैया संरक्षण में जुटे

उत्तराखंड बागेश्वर

 

बागेश्वर। पुराने दिन याद आते हैं जब नन्हीं गौरैया आंगन में फुदकती थी और चहचहाती थी। अम्मा कोई दाना बीनती तो उसके आसपास ही रहती और अपने बच्चों को दाना देकर फिर आंगन में आ जाती।

पर समय की धारा इस नन्हीं चिरैया के लिए माकूल नहीं रही और वह हमारे घर आंगन से दूर होती चली गई। यह पर्यावरण के लिए भी चिंता का विषय बन गया।

इन सब के बीच एक ऐसा पक्षी प्रेमी भी है जो इस नन्हीं चिड़िया को न केवल संरक्षण दे रहा है, बल्कि अपने घर के झरोखों में घरोंदे बनाकर उसके वंश को भी बढ़ाने में लगा है।

कत्यूर घाटी के टीट बाजार निवासी अरविंद वैष्णव ऐसे पक्षी प्रेमी हैं जो लगातार चौदह सालों से गौरैया संरक्षण के कार्य में जुटे हैं। उन्होंने अपने आवास में कई घोंसले बनाए हैं, जहां पर लगभग आठ दर्जन से अधिक गौरेया अपना आवास बनाए हुए हैं।

अरविंद वैष्णव जीव-जंतुओं से बहुत प्यार करते हैं। इसी कड़ी में उन्होंने विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए हैं। उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता शंभू दत्त वैष्णव और माता दीपा वैष्णव उनके इस कार्य को आगे बढ़ाते हैं।

वैष्णव का कहना है कि जगह-जगह मोबाइल टावर लगे हैं। उनसे निकलने वाली तरंगों से कई प्राणियों का जीवन खतरे में पड़ने लगा है। मधुमक्खियों की भांति गौरैया प्रजाति की चिड़िया भी उसके असर से प्रभावित हो रही है। उनकी संख्या तेजी से घट रही है।

इसके अलावा पहाड़ों पर अब लेंटर वाले मकान बनने से भी गौरैया को घोंसले नहीं मिल पा रहे हैं। इसी कारण उन्होंने संरक्षण का अभियान शुरू किया।

दाना पानी की रहती है उचित व्यवस्था

अरविंद ने गौरेया के लिए दाना पानी की उचित व्यवस्था की है। वे चिरैया के लिए बर्तन में पानी रख देते हैं और घरोंदे समेत अन्य स्थानों पर भी दाने डाल देते हैं।

देखभाल के लिए रखी स्थानीय महिला

अरविंद को अपने व्यवसाय के लिए बाहर रहना पड़ता है। गौरैया की देखभाल के लिए उन्होंने अपने घर में एक स्थानीय महिला बिमला थापा को रखा है। जिसको केवल गौरैया की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

पर्यावरणविद डा. डीएस रावत ने बताया कि गौरैया उल्लास का प्रतीक है। जैव विविधता को बचाए बिना पर्यावरण का संरक्षण नहीं हो सकता।

अरविंद का प्रयास बहुत ही सराहनीय है। आज शहरीकरण के दौर में गौरैया विलुप्ति के कगार पर है। मकानों का निर्माण भी गौरैया के अनुकूल नहीं हो पा रहा है। मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन से अंडे नष्ट हो जाते हैं। जिससे गौरैया की वंश वृद्धि रुक रही है।

 

 

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