बाघों के आकलन के लिए कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल किया जाता है। अन्य साक्ष्य भी जुटाए जाते हैं। कैमरा ट्रैप की फोटो एक बार आने के बाद पुनः उसी स्थान पर रीकैप्चर्ड किया जाता है। इसके बाद सभी कैप्चर्ड फोटो का विश्लेषण और गहनता से अध्ययन कर टाइगर की संख्या का अनुमान लगाया जाता है।
विस्तार
वन विभाग बाघों की गिनती में अतिरिक्त एहतियात बरतता और कैमरा ट्रैप लगाने में लगाए गए वनकर्मियों की निगरानी होती तो बाघों की संख्या प्रदेश में 575 होती। दरअसल स्टेटस ऑफ टाइगर्स को प्रीडेटर्स एंड प्रे इंडिया-2022 रिपोर्ट में उत्तराखंड के तीन वन प्रभागों में 15 बाघों को कैमरा ट्रैप की कम फोटो और खराब छवियों के कारण गिनती में जोड़ा ही नही गया। यही वजह रही कि प्रदेश में बाघों की संख्या 560 पर अटक गई और उत्तराखंड देश में तीसरे स्थान पर आया।
विश्व बाघ दिवस पर जारी आंकड़ों के अनुसार, 785 बाघों के साथ मध्य प्रदेश पहले, जबकि दूसरे स्थान पर रहे कर्नाटक में 563 बाघ रिकॉर्ड किए गए। बाघों के आकलन के लिए कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल किया जाता है। अन्य साक्ष्य भी जुटाए जाते हैं। कैमरा ट्रैप की फोटो एक बार आने के बाद पुनः उसी स्थान पर रीकैप्चर्ड किया जाता है। इसके बाद सभी कैप्चर्ड फोटो का विश्लेषण और गहनता से अध्ययन कर टाइगर की संख्या का अनुमान लगाया जाता है। राज्य के चंपावत वन प्रभाग, अल्मोड़ा वन प्रभाग और देहरादून वन प्रभाग में कैमरा ट्रैप पुराने और बेहतर नहीं थे। साथ ही वनकर्मियों ने भी पर्याप्त रुचि नहीं दिखाई थी, जिसकी वजह से बाघों की फोटो साफ और स्पष्ट नहीं आई।
चंपावत वन प्रभाग में 11 बाघों की हुई पहचान
रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां बाघों की 83 छवियां प्राप्त हुईं जिसमें 11 बाघों की पहचान की गई। यहां पर्याप्त कैमरा ट्रैप की फोटो नहीं मिली। रीकैप्चर्ड फोटो भी खराब थीं। कैमरा ट्रैप डिजाइन भी ठीक नहीं था। इसके चलते यहां के 11 बाघों को शामिल नहीं किया गया।
अल्मोड़ा वन प्रभाग में एक बाघ की पहचान
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के उत्तर में अल्मोड़ा वन प्रभाग है। इसे राज्य में ऊंचाई वाले इलाके में बाघ संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। रिपोर्ट में यहां बाघों की 12 फोटो मिलीं। इनमें एक बाघ की पहचान की गई, लेकिन कैप्चर फोटो की संख्या अपर्याप्त थीं। अपर्याप्त फोटो के चलते इस स्थान के बाघ का अनुमान नहीं लगाया गया है।