रामनगर : कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (CTR) में करीब पांच साल बाद एक बार फिर धारीदार लकड़बग्घा (Hyena) नजर आया है। जिसको लेकर सीटीआर प्रशासन खासा उत्साहित है। हाइना कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़, प्लेन और सोननदी क्षेत्र के कैमरों में ट्रैप हुए हैं। ट्रैप हुए हाइना की संख्या तीन बताई जा रही है। वैसे तो देश में हाइना की ताजा संख्या का सही आकलन नहीं है, लेकिन एक दावे के मुताबिक भारत में लकड़बग्घों की संख्या करीब तीस हजार बताई गई है।
दो प्रकार के होते है लकड़बग्घे
कार्बेट के निदेशक राहुल बताते हैं कि लकड़बग्घा की कुल चार प्रजाति वर्तमान में जीवित हैं। इनमें धारीदार लकड़बग्घा, धब्बेदार लकड़बग्घा, भूरा लकड़बग्घा और कीटभक्षी लकड़बग्घा आता है। भारतीय उपमहादीप में धारीदार लकड़बग्गे पाए जाते हैं। जंगलों के पर्यावरण संरक्षण में इनका अहम योगदान है। बीमारी से मरे पशु को शिकारी पशु नहीं खाते। लेकिन हाइना उन्हें सफाई के साथ चट कर जाते हैं। लकड़बग्गे सड़े गले बदबूदार मांस को तो चट कर ही जाते हैं साथ ही यह जानवर की हड्डियां तक खा जाते हैं। नतीजा जंगल में साफ-सफाई बनी रहती और सड़ांध नहीं फैलने पाती है।
Hyena की औसतन आयु 20 साल
Hyena बदसूरत जानवर है। इसके शरीर से दुर्गंध आती है। इसकी गर्दन मोटी, अगली टांगे भारी, आँखें गहरी, जीभ खुरदरी ओर चौड़ा सिर इसकी पहचान है। इनकी औसतन आयु 20 साल होती है। काफी समय पहले भी हाइना कॉर्बेट में दिखाई दिए थे। उसके बाद इनका दिखाई देना बंद हो गया था। अब फिर से इनके दिखाई देने से सीटीआर प्रशासन उत्साहित है। निदेशक राहुल कहते है अब इनके उपर निगरानी रखी जा रही है। इनके संरक्षण की दिशा में प्रयास किये जायेंगे।
आपस में सुलझा लेते हैं समस्याएं
धारीदार लकड़बग्घा की प्रजाति की संख्या सबसे ज्यादा है। अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में यह बहुतायात में पाया जाता है। भूरे लकड़बग्घा केवल अफ्रीका के सीमित इलाको में पाये जाते हैं। भूरे लकड़बग्घा की प्रजाति की संख्या सबसे कम होती है। धब्बेदार लकड़बग्घा की हंसी बहुत ही रोचक होती है। इसकी हंसी से उम्र और सामाजिक पद का पता चलता है। लकड़बग्गा हंसकर यह बताता है कि उसे खाना मिल गया है। यह प्राणी चिंपाजी से भी ज्यादा होशियार है। ये आपस में कम्युनिकेट भी करते है। समस्याओं को लकड़बग्गा सुलझा लेता है।