हल्द्वानी : शहर में रेलवे की जमीन को पांच, दस से लेकर 100 रुपये के स्टांप पेपर में बेच दिया गया। विभागीय भूमि पर अवैध कब्जों की खरीद-बिक्री के खेल में करोड़ों का गोलमाल हो गया। पूर्व पार्षद हितेश पांडेय ने स्टांप पेपर पर हुए 81 सौदों से जुड़े दस्तावेजों के साथ सीएम पुष्कर सिंह धामी व रेलवे के इज्जतनगर मंडल डीआरएम से शिकायत करते हुए इस प्रकरण में संलिप्त लोगों पर कार्रवाई की मांग की है।
रेलवे बाजार स्थित अपने कार्यालय में पत्रकार वार्ता के दौरान दस्तावेज दिखाते हुए पूर्व पार्षद हितेश ने कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत उन्होंने नगर निगम से दस्तावेज जुटाए हैं। नामांतरण से जुड़े मामलों में रेलवे की जमीन के कब्जों को स्टांप पेपर पर दो से लेकर 15 लाख रुपये में बेच दिया गया। रेलवे की ओर से सीमांकित जमीन पर कब्जे कर खरीद-बिक्री करना गैरकानूनी है। हाईकोर्ट की ओर से अतिक्रमण हटाने के आदेश के बावजूद प्रशासन खामोश रहा। जिसका खामियाजा अतिक्रमणकारियों ने रेलवे की जमीन को खुर्द-बुर्द करने का काम किया। बाद में अवैध कब्जों को नगर निगम के दस्तावेजों में दर्ज करा लिया।
मलबे का होता है सौदा
सरकारी या विभागीय जमीन पर अवैध कब्जों का विधिक तौर पर खरीद-बिक्री नहीं हो सकती। लिहाजा स्टांप पर होने वाले इकरारनामे में मलबे का कब्जा एक से दूसरे को देने का जिक्र रहता है। विक्रेता रकम लेकर निकल जाता है, भविष्य में किसी तरह की विभागीय कार्रवाई होने पर कब्जा जाने का जोखिम खरीदार पर रहता है। रजिस्ट्री विभाग में यह संपत्ति दर्ज नहीं होती। इस तरह के अधिकांश सौदे 2017 के पहले के हैं।
मालिकाना हक नहीं देता नामांतरण
नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 177 के तहत निगम प्रत्येक पांच वर्ष में अपने सीमा के अंतर्गत आने वाले भवनों को सूचीबद्ध करता है। सड़क, पेयजल, मार्गप्रकाश जैसी सुविधा उपलब्ध कराने के एवज में भवन स्वामी या उस पर काबिज व्यक्ति से भवन, स्वच्छता कर वसूलता है। मौके पर जब जो काबिज मिलता है उसका नाम निगम के दस्तावेज में दर्ज करने की प्रक्रिया नामांतरण है। एसएनए विजेंद्र चौहान बताते हैं कि नामांतरण का दस्तावेज संपत्ति का मालिकाना हक नहीं देता। इसे विधिक मान्यता भी नहीं है।