फतेहपुर रेंज में हमलावर बाघ अब भी लापता, तलाश में बीमार हो गई गोमती हथिनी, वापस भेजी गई कार्बेट

उत्तराखंड नैनीताल

हल्द्वानी : कार्बेट नेशनल पार्क के ढिकाला जोन से आकर फतेहपुर के जंगल में हमलावर बाघ को तलाशने में जुटी गोमती हथिनी बीमार हो गई। पीठ में सूजन आने के कारण वन विभाग ने दो दिन पहले उसे रेस्क्यू अभियान से मुक्त कर दिया। अब केवल आशा हथिनी की मदद से जंगल में बाघ को तलाशने की कोशिश की जा रही है। वहीं, गोमती का इलाज कार्बेट के वन्यजीव चिकित्सक करेंगे।

जनवरी और फरवरी के महीने में फतेहपुर रेंज के जंगल में दो महिलाओं और एक पुरुष की बाघ के हमले में मौत हो गई थी। मृतकों में काठगोदाम के टंगर निवासी नंदी सनवाल, बजूनिया हल्दू निवासी नत्थूलाल और पनियाली निवासी जानकी देवी शामिल थीं। जानकी की मौत के बाद लोगों का आक्रोश काफी बढ़ गया था। 23 फरवरी से वन विभाग ने जंगल में हमलावर बाघ को खोजना शुरू कर दिया।

लोकेशन ट्रेस करने के लिए ट्रेप कैमरों का जाल बिछाने के साथ पिंजरे भी लगाए गए। मगर घने जंगल में बाघ को तलाशना और फिर टैंकुलाइज करने का काम मुश्किल और खतरों से भरा था। इसलिए कार्बेट प्रशासन से गश्त के लिए दो हाथियों की मांग की गई। 13 मार्च को कार्बेट के ढिकाला जोन से हथिनी गोमती व आशा फतेहपुर रेंज पहुंच गए थे।

15 मार्च से दोनों को रेस्क्यू अभियान में शामिल किया गया। दोनों की मदद से टीम जंगल में बाघ को तलाशने जाती रही। लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली। वहीं, रेंजर फतेहपुर केएल आर्य ने बताया कि इस बीच गोमती की पीठ में थोड़ा सूजन आ गई। जिस वजह से 26 मार्च को उसे अभियान से अलग कर दिया गया। ताकि चिकित्सकों से उपचार और आराम भी मिल सके।

एक हथिनी का खर्चा पांच हजार

कार्बेट से हथिनी को लाकर रेस्क्यू अभियान में शामिल करने से वन विभाग का काफी बजट भी खर्च हो रहा है। रोजाना करीब पांच हजार रुपये एक हथिनी की खुराक को चाहिए। उन्हें गन्ना, आटा, गुड़, केले, चन्ना, रोहिणी व बरगत के पत्ते और बांस आदि भी देना पड़ता है।

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